रमेश शंकर झा
समस्तीपुर/हाजीपुर:- शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा कि वर्तमान दौर में भारतीय सनातन संस्कृति खतरे में नजर आ रही है। हिन्दू धर्म को तहस-नहस करने और साधु-संतों को बदनाम करने की साजिश लगातार रची जा रही हैं। अब समय आ गया है कि प्रत्येक हिन्दू जागृत होकर हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए आगे आएं। उक्त बातें जगदगुरू शंकराचार्य पुरी पीठाधीश्वर स्वामी निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने अखिल भारतीय धर्म संघ के तत्वावधान में आयोजित धर्मसंसद में व्यक्त किए। उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि हमारी प्राचीन संस्कृति व सभ्यता के दम पर पूरे विश्व का संचालन हो रहा है। भारतीय परंपरा एवं संस्कृति का डंका पूरे विश्व में बजता रहा है।
भारतीय परंपरा को नुकसान पहुंचाने के लिए पाश्चात्य संस्कृति की घुसपैठ हो रही है। इसके बावजूद सनातन संस्कृति अखंड है और जब तक सूरज-चांद है तब तक भारतीय संस्कृति का डंका पूरे विश्व में बजता रहेगा। हमारी संस्कृति को दुनिया की कोई ताकत हिला नहीं सकती। सदर प्रखंड स्थित चांदी धनुषी गांव में आयोजित श्रीसहस्त्र चंडी महायज्ञ के दरम्यान आशीर्वचन देने पहुंचे शंकराचार्य ने शनिवार की देर शाम आयोजित धर्म संसद कार्यक्रम में मौजूद हजारों लोगों से मुखातिब होते हुए कहा कि जब तक सनातन संस्कार पर संविधान, रक्षा, शिक्षा, विकास की नीति तय नहीं होगी, तब तक राष्ट्र के रूप में हमारा विकास संभव नहीं है। विदेशी शिक्षा आधारित राष्ट्र उन्नति नहीं कर सकता। अगर देश को सेक्युलर बनाना था, तो आजादी की जरूरत क्या थी? । राम जन्म भूमि पर कहा कि बाबर जैैसे विनाशकारी तत्वों के लिए आखिरकार सरकार पांच एकङ जमीन देकर भारत में एक और मक्का मदीना के लिए खैरात में जमीन देना अच्छा संकेत नहीं है । केन्द्र सरकार की यह धार्मिक उदारवाद की नीति अच्छी नहीं है । कहा कि मोदी व नीतीश सरकार युवाओं के लिए धरातल पर कुछ काम नहीं कर सकी। भारतीय संस्कृति ज्ञान के साथ विज्ञान सम्मत बताते हुए कहा कि अणु और परमाणु से भी ज्यादा ताकतवर हैं गीता और हमारे धर्मग्रंथों के श्लोक और मंत्र। गीता मनुष्य को कुरूक्षेत्र के मैदान में खड़े अर्जुन की तरह दिव्य दृष्टि प्रदान करती है। गीता के श्रवण, मनन, मंथन और चिंतन से हम अहंकारमुक्त हो सकते हैं। गीता जैसे दिव्य ग्रंथ मानव मात्र के लिए हर युग में मार्गदर्शक हैं। मनुष्य को यदि आत्म निरीक्षण, आत्म कल्याण और आत्म मंथन करना है तो गीता का आश्रय लेना चाहिए क्योंकि यह वह अदभुत और अनुपम सृजन है जो विज्ञान की कसौटी पर भी खरा उतरा है, लेकिन विश्व के 80 प्रतिशत वैज्ञानिक तमोगुणी बुद्धि की तीव्रता वाले हैं, जो विकास की जगह विनाश की रचना कर रहे हैं। तमोगुण की अधिकता से ही विनाश का मार्ग प्रशस्त होता है। शंकराचार्य जी ने अपने ओजस्वी उद्बोधन में कहा कि गीता का प्रत्येक मंत्र अनुशीलन योग्य है। बुद्धिमानों की सफलता इसी बात में निहित है कि वे अपनी बुद्धि एवं मन को सर्वेश्वर में समाहित करें और भगवान की कृपा की अनुभूति करें।
उपनिषदों के आधार पर हम सच्चिदानंद के अत्यंत निकट पहुंच सकते हैं। यही नहीं, काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसे मनोविकार भी क्षीण होकर हमें दैहिक, दैविक एवं भौतिक तापों से मुक्ति दिला सकते हैं। गीता के प्रत्येक अध्याय में अणु और परमाणु से भी अधिक सृजन की शक्ति है। कहा कि जिस तरह पानी के ऊपर जमीं काई के कारण अंदर का दृश्य नहीं दिखाई देता उसी तरह हमारे पाप कर्मो के कारण अपना वास्तविक चरित्र सामने नहीं आ पाता। अपने पाप दूर होने के बाद ही हमें अपने मूल स्वरूप का ज्ञान होगा। निष्काम कर्म पर गीता में जोर दिया गया है। निष्काम कर्म का उपदेश देना आसान है लेकिन अमल करना बहुत कठिन है। मौके पर मुख्य यज्ञमान अमरेन्द्र कुमार सिंह,व्यवथापक सत्येन्द्र सिंह राणा,
आचार्य धर्मवीर,सचिन वशिष्ठ,मीडिया प्रभारी पदमाकर सिंह लाला,सुबोध सिंह,राजीव सिंह,कन्हैया सिंह,अलका सिंह,रामकुमार सिंह,अर्पिता चौहान ,स्वामी निर्विकल्पा नन्द सरस्वती,निकेश ब्रहाचारी,सुरेश सिंह ब्रहाचारी,राम कैलाश पाण्डेय,भाई रंधीर,प्रो.गौतम त्रिवेदी,अशोक कुमार सिंह, प्रेमचन्द झा आदि मौजूद थे ।