*भगवान के नाम सुमिरन बिन धोखा पाओगे:- साध्वी दीदी माँ ॠतंभरा। हर खबर पर पैनी नजर।*

रमेश शंकर झा
समस्तीपुर बिहार।

समस्तीपुर:- हाजीपुर सदर प्रखंड स्थित चांदी धनुषी गांव में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन शनिवार को श्रीमद्भागवत के भक्ति रस की सरिता में उपस्थित श्रद्धालु पूरी  तन्मयता के साथ प्रेम रस की सरिता में डूब गये। प्रेम, सौंदर्य, विरह व विरह को झांकी के माध्यम से रेखांकित किया गया। वहीं प्रदुम्न जन्म, चमनासुर का वध, सत्राजित, प्रसेनजीत, सत्यभामा विवाह, जरासंध वध, शिशुपाल वध, कृष्ण-सुदामा मिलन के परिदृश्यों व 


प्रसंगों पर अपनी अमृतमयी वाणी से दीदी माँ ॠतंभरा ने उपस्थित लोगों को धार्मिक आस्था से लबरेज़ कर दिया। विश्व विख्यात श्रीमद्भागवत कथा ममर्ज्ञी साध्वी दीदी माँ ॠतंभरा ने कहि कि भवसागर बहुत विचित्र है। बाहर नहीं हैं । हमारे मन के भीतर है।मन ही अनंत सागर है। लक्ष्य निर्धारित नहीं होने पर जीवन में कभी सफलता नहीं है। वासनाओं पर काबू सत्संग से ही संभव है ।चाहे वह वासना किसी प्रकार का हो।अपने अंदर बैठे द्वन्दों से परिचित होने की जरूरत है।

मन में यदि रोग हो तो इसका इलाज होना चाहिए । ईष्या ,लोभ से भरा मन भी रोगी है।मन ही हमें बेचारा बनाता है। अपने आप से साक्षात्कार नहीं होने देगा।मन चंचल है।नतीजतन विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है । मनुष्य का अपने आत्मा से साक्षात्कार जरूरी।सबको प्रसन्न करना बहुत मुश्किल है।जो खाली बैठा हैं वहीं दूसरों की हमेशा संदेह व बुराई करता रहता है।काम करने वालों से गलतियाँ होती रहती लेकिन गलतियों से सबक लेने की जरूरत है। किसी के काम जो आए उसे इंसान कहते हैं ।अपनी आंखों में यदि खङे रहो समझो ईश्वर की आंखों में हो। भगवान कृष्ण प्रेम के संवाहक है उन्होंने 16 हजार 108 कन्याओं की भावनाओं को सम्मान प्रदान किया। वे सभी गोपियों की चित के संवाहक है।

सेवा उसी को देना चाहिए जो उसके योग्य हो। जिन पांडवो को निरीह समझ कर दर दर भटकते को छोड़ दिया था।आज उनके वैभव की रक्षा के लिए स्वंय जगदीश्वर खड़े है।भगवान हमेशा कमजोर लोगों की मदद के लिए तैयार रहते हैं।स्वभाव में सहजता व  सज्जनता रहनी चाहिए । विन्रमता नहीं रहने पर किसी के हृदय में जगह नहीं बना सकते। थोङी सी उपलब्धियों पर इतराहट नहीं होना चाहिए। इससे नुकसान अवश्यसंभावी है।जो स्वाद प्रेम व प्रीत में हैं ।वो अन्य किसी भी चीज में नहीं । मनुष्य वहीं सुखी होता है जो विन्रम व सहज हो। भगवान हमेशा पापियों का संहार करते हैं। त्याग व तप कठिन नहीं है कठिन है सत्य संगति को आत्मसात करना।कृष्ण-सुदामा की मित्रता पर संवाद करते हुए कहा कि मित्र वो होते हैं जो विषम परिस्थितियों में खङा रहे न कि केवल सुखद समय में खङा रहे।

बिना राधा कि कृपा से कृष्ण को प्राप्त नहीं किया जा सकता । नाम भले अलग अलग हो सबके भगवान एक है। चाहे उनका स्वरूप जो भी हो। भगवान कृष्ण है कि हमारे शरीर की मृत्यु होगी मेरी आत्मा की कभी मृत्यु नहीं होगी।ज्ञानी जगत की असलियत को जानते हैं अज्ञानी वस्तु को ही महज अपना मानते हैं । आत्मा में बंधन नहीं होता। श्रीमद्भागवत कथा का रसपान करने वाले मानव सभी बंधनों से मुक्त रहते हैं।ब्रहालीन बाबा पशुपतिनाथ जी महाराज की तप भूमि धर्मनगरी चांदी धनुषी में आयोजित श्रीसहस्त्र चंडी महायज्ञ के दरम्यान आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के अंतिम दिन शनिवार को श्रीमद्भागवत कथा के व्यासपीठ से उपस्थित हजारों श्रद्धालुओं से आह्वान करते हुए दीदी माँ ॠतंभरा ने कहा कि देश को न गद्दार, न कायर चाहिए ।इस देश को केवल वीर चाहिए। समुद्र हो वीर की तरह सीने ताने रहो। कहा कि जो मेरे देश का अपना नहीं वो मेरा कभी अपना नहीं ।

देश में आज भी कंस जैसे लोगों की कमी नहीं है जो आज भी भ्रूण में पल रहे प्रकृति के  ही हत्या कर रहे हैं।विदेशी साजिश हमारे देश को खोखला करने पर तुली है। दक्षिणा मांगते हुए आह्वान किया कि युवा पीढ़ी राष्ट्र जागरण की भावना को अपने जीवन से जोड़ें । सांस्कृतिक चेतना जगाते हुए कहा कि हम हिन्दुओं को एक हो जातिगत पहचान समाप्त करनी चाहिए ताकि भारतीयता ही हमारी पहचान रह सकें। इस मौके पर मुख्य यजमान अमरेन्द्र कुमार सिंह,व्यवथापक सत्येन्द्र सिंह राणा,आचार्य धर्मवीर,सचिन वशिष्ठ,मीडिया प्रभारी पदमाकर सिंह लाला,सुबोध सिंह,राजीव सिंह,कन्हैया सिंह,अलका सिंह,रामकुमार सिंह,अर्पिता चौहान आदि मौजूद थे।

सुमरिन बिन धोखा खाओगें ….

श्रीमद्भागवत कथा के दरम्यान साध्वी दीदी माँ ॠतंभरा ने अपनी अमृतमयी वाणी से ” सुमरिन बिन धोखा खाओगें ,पार में खङे खङे अपार देखते रहे,कान्हा रे कान्हा,मेरा तो जो भी कदम हैं वो तेरी राह में हैं, गुरूदेव तेरा माया, भज मन गोविंद गोपाल…आदि भजनों पर श्रद्धालु झूम उठे।
   

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