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समस्तीपुर:- कोविड-19 महामारी के दौरान लगी लॉकडाउन के बाद सरकार के द्वारा आदेश मिलने पर करीब एक वर्ष बाद सभी सरकारी और प्राइवेट विद्यालय नए नियम के अनुसार चालू किया गया। जिसमें सरकारी विद्यालय की बात की जाए तो सरकार के द्वारा बनाए गए नए नियमों का पालन करते हुए चलाई जा रही है, कहीं कहीं वहां भी अनियमितता देखी जा रही है। लेकिन प्राइवेट विद्यालयों के द्वारा मनमानी जोरों पर है। सड़कों से जब प्राइवेट विद्यालय की वाहन गुजरती है तो अमूमन यह देखा जाता है कि एक छोटी मैजिक, बोलेरो गाड़ी में करीब 20 बच्चे को भूसे की तरह ठुस ठूसकर बैठाया जाता है। बीते दिन जिले के सिंघिया घाट रेलवे गुमटी के निकट एक छोटी गाड़ी पर करीब 20 बच्चे को बैठा कर ले जा रहा था। यहां तक कि ड्राइवर सीट पर 5 बच्चे को बैठा लिया गया था। कुछ इसी तरह से जिले के विभिन्न प्रखंडों में और प्रखंड के विभिन्न विद्यालयों के द्वारा जो विद्यार्थियों को लाने और पहुचानेे के लिए वाहन की व्यवस्था की गई है। उसके चालकों के द्वारा इसी तरह से बच्चे को बैठाया जाता है। यहां तक की स्कूल संचालकों के द्वारा उन गाड़ियों का उपयोग बच्चे ढ़ोने के लिए की जाती है जिन गाड़ियो का रजिस्ट्रेशन, फिटनेस, प्रदूषण फेल है और तो और ड्राइवर भी अप्रशिक्षण होते हैं। उनके पास उनका लाइसेंस नहीं होता। ऐसे लोग बच्चे को घर से विद्यालय और विद्यालय से घर पहुंचाने का काम करते हैं। कोविड-19 को लेकर जो नियम सरकार के द्वारा बनाई गई थी उसे इन प्राइवेट विद्यालय के संचालकों और उनके गाड़ी चालकों के द्वारा खुलेआम धज्जियां उड़ाई जा रही है। लेकिन स्थानीय प्रशासन और विभागीय लोग इस पर अंकुश लगाने में पूरी तरह से अक्षम दिख रहे हैं। लोग अपने मनमाने ढंग से विद्यालय का संचालन कर रहे हैं, बच्चो की भविष्य अर्थात जीवन का कोई ख्याल नहीं, उन्हें अपने मुनाफे से मतलब है, अधिक पैसे बचाने के चक्कर में विद्यालय संचालकों के द्वारा इस तरह का कार्य किया जा रहा है। कहीं ना कहीं वरीय पदाधिकारी भी इसमें दोषी नजर आ रहे हैं। शायद इसीलिए इस तरह प्राइवेट विद्यालयों के संचालकों के द्वारा विद्यालय का संचालन मनमाने ढंग से कराई जा रही। कार्यों पर कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं। बच्चों का अभिभावक फीस मूल्य वृद्धि से परेशान है। उन्हें महंगाई की दुहाई देकर संचालक लॉकडाउन के पूर्व के अनुपात इस वक्त डबल पैसे वसूल रहे हैं। बच्चे को भविष्य खराब ना हो यह देखते हुए अभिभावक अपने पेट काटकर इन प्राइवेट संस्था के लोगों का जेब भर रहे हैं। लेकिन सरकार और स्थानीय विभागीय लोग इस और कोई सख्त पहल नहीं कर पाती है। जिस वजह से इनकी मनमानी जोरों पर है।