*बाल अधिकार सप्ताह के तहत ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन। हर खबर पर पैनी नजर।*

रमेश शंकर झा

पटना:- विश्व बाल दिवस के तत्वावधान में यूनिसेफ़ के द्वारा 14 नवंबर से 20 नवंबर तक मनाए जा रहे बाल अधिकार सप्ताह के तहत विभिन्न गतिविधियाँ चलायी जा रही हैं। इसी कड़ी में यूनिसेफ़, बिहार द्वारा ‘हर बच्चे के लिए एक सुरक्षित दुनिया की परिकल्पना’ थीम पर ब्लॉगर्स और सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर्स के साथ ऑनलाइन परिचर्चा का आयोजन किया गया।
“विभिन्न ज्वलंत मुद्दों को लेकर लोगों को जागरूक करने वाले ब्लॉगर्स अपनी लेखनी के ज़रिए बाल अधिकार से जुड़े मुद्दों को प्रभावी ढंग से आम जनमानस तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभा सकते हैं. बाल अधिकार दिवस, संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1989 में पारित बाल अधिकार समझौते की वर्षगाँठ के रूप में मनाया जाता है. इसके अंतर्गत ‘गो ब्लू’ नाम से एक सांकेतिक अभियान चलाया जा रहा है; नीला रंग बाल अधिकार का परिचायक है. इस बार के विश्व बाल दिवस थीम के तहत कोविड महामारी के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन को प्रमुखता से उठाया गया है.” यूनिसेफ़ की संचार विशेषज्ञ निपुण गुप्ता ने उक्त बातें कहीं.

‘बिहार के बच्चों पर कोविड-19 महामारी के प्रभाव’ विषय पर अपनी प्रस्तुति में यूनिसेफ़ बिहार के प्रोग्राम मॉनिटरिंग एवं इवैल्यूएशन स्पेशलिस्ट प्रसन्ना ऐश ने बच्चों के स्वास्थ्य, शिक्षा, सुरक्षा आदि से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की और कहा कि इस महामारी से बच्चे सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं. आगे उन्होंने मातृ व शिशु स्वास्थ्य, पोषण, स्कूली शिक्षा, स्वच्छता, सुरक्षा से जुड़े बुनियादी सुविधाओं की सुलभता और प्रयोग को लेकर यूनिसेफ़ बिहार और पापुलेशन काउंसिल इंस्टिट्यूट द्वारा 794 (चरण 1) और 790 (चरण 2) लोगों से बातचीत के आधार पर किए गए त्वरित समीक्षात्मक अध्ययन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि 80% परिवार लॉकडाउन से प्रभावित हुए हैं. तकरीबन 64% लोगों की नौकरी चली गई है. खाद्य सुरक्षा की बात करें तो 40% परिवारों को खाने-पीने की समस्या हुई है. वहीं, 6-14 आयुवर्ग के स्कूली बच्चों में से केवल 46 फ़ीसदी बच्चों को मिड डे मील के बदले अनाज या राशि प्राप्त हुई है.

यूनिसेफ़ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. सैयद हुब्बे अली ने कोविड काल में स्वास्थ्य सुविधाओं पर रौशनी डालते हुए कहा कि गर्भवती महिलाओं का एचआईवी टेस्ट और प्रसव पश्चात सेवाएं बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं. साथ ही, संस्थागत प्रसव और बच्चों का टीकाकरण का लाभ भी नहीं मिल पाया है. राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार के अनुसार राज्य के 13% बच्चे कोविड से प्रभावित हुए हैं और 1% की मृत्यु दर्ज़ की गई है. राज्य में कोविड-19 के कारण कुल 824 मौतों में से 7 बच्चे शामिल हैं. अप्रैल 2020 में टीकाकरण के कारण 1 मिलियन बच्चे चूक गए क्योंकि 93000 सत्र लॉकडाउन के कारण रद्द कर दिए गए थे. मार्च, अप्रैल और मई 2020 में संस्थागत प्रसव 50% कम हो गया (स्रोत: HMIS रिपोर्ट)

यूनिसेफ़ के आपदा जोखिम न्यूनीकरण पदाधिकारी, बंकू बिहारी सरकार ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का सबसे ज़्यादा प्रभाव बच्चों पर पड़ रहा है. असमय (70 दिन से घटकर 40-45 दिन औसत बारिश) और अल्प वृष्टि (1200 मिलीमीटर से घटकर 1000 मिलीमीटर) की वजह से बाढ़ और सुखाड़ में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है जिसकी वजह से पलायन की समस्या बहुत बढ़ी है. इसकी वजह से परिवार की आजीविका समेत बच्चों की खाद्य सुरक्षा, उनके स्वास्थ्य, विकास और शिक्षा पर सीधा असर पड़ रहा है. दुर्भाग्यवश, जलवायु परिवर्तन पर होने वाले संगोष्टियों में बच्चों को शामिल नहीं किया जाता है. लेकिन भागीदारी के अधिकार के तहत बच्चों को इन चर्चा-परिचर्चाओं की हिस्सा बनाना बेहद जरूरी है.

यूनिसेफ़ दिल्ली के संचार पदाधिकारी इदरीस अहमद ने ब्लॉगर्स को संबोधित करते हुए कई ज़रूरी टिप्स दिए. साथ ही, उन्होंने वर्ल्ड चिल्ड्रेन्स डे के मद्देनज़र यूनिसेफ़ द्वारा कोविड काल में बाल सुरक्षा व अधिकारों को लेकर सोशल मीडिया पर चले जाने वाली विभिन्न गतिविधियों जैसे गो ब्लू कैम्पेन, चिल्ड्रेन्स टेकओवर्स, ब्लॉग राइटिंग आदि के बारे में विस्तार से चर्चा की. उन्होंने ब्लॉगर्स से अपने प्लेटफार्म पर बाल अधिकार संबंधी मुद्दों पर लिखने का आग्रह किया. इस साल के थीम के मद्देनज़र उन्होंने बच्चों पर कोविड और जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के बारे लिखने का आवाहन करते हुए ज़रूरी बातें बताईं. ख़ास तौर पर युवा ब्लॉगर्स के सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें ट्रोल्स को अनसुना करते हुए अपने काम पर ध्यान देना चाहिए.

जानेमाने ब्लॉगर आनंद कुमार ने बच्चों और युवा ब्लॉगर्स को तथ्यों के बारे में अपडेट रहने की सलाह दी. उन्होंने बाल अधिकार से जुड़े मुद्दों को ब्लॉग के ज़रिए बढ़ावा देने के लिए युवा ब्लॉगर्स के लिए विशेष रूप से बेस्ट ब्लॉग प्रतियोगिता का आयोजन करने और ईनाम के तौर पर बाल मुद्दों से जुड़ी किताबें वितरित करने का सुझाव दिया.
कार्यक्रम में बिहार यूथ फ़ॉर चाइल्ड राइट्स से प्रियस्वरा और किलकारी से आकाश और अनीशा जलाल जैसे युवा ब्लॉगर्स , टीचर्ज़ आफ बिहारपटना वेमन्स कॉलेज , आमटी समेत अन्य स्थापित ब्लॉगर्स और सोशल मीडिया इन्फ़्लुएन्सर्स ने हिस्सा लिया. जमात-ए-इस्लामी हिन्द से मोहम्मद शहज़ाद ने भी अपने विचार रखे.

Bihar – आंकड़ों पर एक नज़र
चिंताजनक शिशु मृत्युदर
जन्म के चौथे सप्ताह के भीतर प्रति 1000 25 शिशु की मृत्यु
5वां जन्मदिन मनाने के पूर्व प्रति 1000, 37 शिशुओं की मृत्यु (स्रोत: SRS, 2018)
कुपोषण
0-5 आयुवर्ग का हर दूसरा बच्चा कुपोषित है
1-4 आयुवर्ग के 44% बच्चे रक्ताल्पता का शिकार हैं (स्रोत: CNNS, 2016-18)
शिक्षा
कक्षा 1 में नामांकित 100 बच्चों में से सिर्फ़ 94 पांचवीं तक पहुंच पाते हैं
इनमें से सिर्फ़ 61 बच्चे आठवीं तक पहुँच पाते हैं
दसवीं तक यह संख्या घटकर 38 हो जाती है (स्रोत: U-DISE, 2017-18)
बाल विवाह
देश में बाल विवाह के सबसे ज़्यादा मामले
18 साल की क़ानूनी उम्र से पहले 40 फ़ीसदी लड़कियाँ ब्याह दी जाती हैं
12 फ़ीसदी किशोरावस्था में ही गर्भवती हो/मां बन जाती हैं (स्रोत: NFHS-4, 2015-16)
बाल श्रम
भारत के कुल बाल श्रमिकों का 11% बिहार से
10.88 लाख बच्चे बाल श्रम में लिप्त (स्रोत: भारत की जनगणना, 2011.

Related posts

Leave a Comment