अनूप नारायण सिंह।
पटना:- मोहिनी घोष जब एक साल की थीं, तब उन के फोटो को ‘फैरैक्स बेबी’ के प्रचार के लिए चुना गया था। उन्होंने बंगाली फिल्मों में लंबे समय तक काम किया है। 17 साल की उम्र में वे ‘मिस कोलकाता’ बनी थीं। बाद में वे बंगाली फिल्मों के साथसाथ हिंदी व भोजपुरी फिल्में भी करने लगी थीं. बाल विवाह पर बनी हिंदी फिल्म ‘एक नई सुबह’ में उन की ऐक्टिंग को बहुत सराहा गया था. पेश हैं, मोहिनी घोष के साथ हुई वरिष्ठ फिल्म पत्रकार अनूप नारायण सिंह की बातचीत के खास अंश:
आप की भोजपुरी फिल्मों में शुरुआत कैसे हुई थी?
मुझे साल 2012 में भोजपुरी फिल्म में काम करने का मौका मिला था. तब से अब तक मैं 15-20 भोजपुरी फिल्में कर चुकी हूं. मुझे हमेशा साफसुथरी फिल्में करने में मजा आया है. फिल्म ‘औरत खिलौना नहीं’ में मेरे काम को काफी पसंद किया गया था. अब मैं हर तरह की फिल्में करती हूं.
मुझे भोजपुरी बोली सुनने में बहुत अच्छी लगती है. ऐसे में जब मुझे भोजपुरी फिल्म का औफर मिला, तो मैं ने उस में काम करना स्वीकार कर लिया. ‘दिल हो गईल तोहार’, ‘औरत खिलौना नहीं’, ‘दुलारा’ और ‘हुकूमत’ जैसी फिल्मों से मुझे यहां नई पहचान मिली है. यह बात और है कि मैं शूटिंग खत्म करते ही वापस अपने शहर कोलकाता चली जाती हूं.
भोजपुरी फिल्मों पर फूहड़पन के बहुत आरोप लगते हैं. आप की राय क्या है?
अब इन में सुधार हो रहा है. यहां भी अच्छी फिल्में बनने लगी हैं. समाज में हर तरह की फिल्म के लिए दर्शक हैं. यह तो फिल्म बनाने वाले को तय करना होता है कि वह किन दर्शकों के लिए फिल्म बना रहा है.
भोजपुरी फिल्मों का दर्शक वर्ग काफी बड़ा है. ज्यादातर लोग मेहनतकश हैं, जो केवल मनोरंजन के लिए फिल्में देखते हैं. यहां के लोग शारदा सिन्हा को भी सुनते हैं और गुड्डू रंगीला को भी.
केवल भोजपुरी फिल्मों की बात नहीं है, बल्कि हिंदी फिल्मों में भी फूहड़पन कम नहीं होता है. काफीकुछ तो लोगों की सोच पर भी निर्भर करता है. केवल सैक्स और खुलेपन से फिल्में नहीं चलती हैं.
क्या बंगला बोलने वाले कलाकारों को भोजपुरी बोलने में परेशानी आती है?
मैं तो भोजपुरी अच्छी तरह बोल लेती हूं. मैं अपनी फिल्मों की डबिंग भी खुद करती हूं. हां, कई मुश्किल शब्दों के मतलब मुझे पूछने पड़ते हैं, पर मुझे भोजपुरी बोलना अच्छा लगता है.
भोजपुरी फिल्मों में क्या नया बदलाव आया है?
भोजपुरी फिल्मों की दुनिया बहुत तेजी से बदल रही है. यहां के दर्शक पहले से ज्यादा समझदार हो चुके हैं. वे अच्छी फिल्में ही देखते और समझते हैं. मैं इन में हर तरह के रोल कर रही हूं. मेरी फिल्मों के किरदार हर रंग वाले होते हैं, जिस की वजह से मुझे दर्शकों का बहुत प्यार मिला है .
मुझे इन फिल्मों में काम कर के ही उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों से जुड़ने और उन की भावनाओं को समझने का मौका मिला है.
आप के परिवार में से कोई भी फिल्मों से नहीं जुड़ा है. क्या कभी आप का विरोध नहीं हुआ?
बंगाली परिवारों में औरतों व लड़कियों को काम करने की आजादी होती है. मैं बाल कलाकार के रूप में फिल्मों में आ गई थी. इस से न तो मुझे और न ही मेरे परिवार को कुछ अलग लगा. हम लोग इस सब को ले कर पूरी तरह से सहज थे.
मेरा परिवार नौकरीपेशा है. केवल मैं ही फिल्मों में हूं. अभी मैं फिल्म डायरैक्शन की पढ़ाई कर रही हूं.
आप को ऐक्टिंग के अलावा और क्या क्या पसंद है?
मुझे ऐक्टिंग के साथसाथ खाना बनाना, खिलाना, दोस्तों से बात करना और गरीब लोगों के बीच समय गुजारना पसंद है. मुझे किताबें पढ़ने का बहुत शौक है. मुझे खुद के फोटो खींचने का शौक है. मोबाइल फोन में सैल्फी कैमरा आने से मेरा यह शौक और भी ज्यादा बढ़ गया है।