संजीव मिश्रा,
भागलपुर:- आखिरकार वो घड़ी शनिवार को आ ही गयी जिसका सबको इन्तेजार था। जी हां हम बात कर रहे अंगिका महोत्सव 2020 की।तिलकामांझी स्थित वृंदावन भवन के सभागार शनिवार को अंग प्रदेश के विद्वानों से खचाखच भरा हुआ था , और वहीं इस बीच में अंगिका महोत्सव 2020 का आगाज हुआ। भागलपुर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ राम आश्रय यादव और स्वामी आत्मानंद महाराज के हाथों अंगिका महोत्सव 2020 का उद्घाटन मंजूषा दीप प्रज्वलित कर किया गया, और सभागार उनके संबोधन से मंत्रमुग्ध हो उठा। पूरा सभागार शांति था और डॉ रामाश्रय यादव ने अंगिका के उत्थान और विकास निदेशालय विवेक पुरुषों देते हुए कहा कि अंगिका वासी को चाहिए कि वे एक अंगिका विश्वविद्यालय की स्थापना की कोशिश करे और करवाएं ताकि अंगिका भाषा और संस्कृति पर विस्तार से बिना प्रतिबंध का शोध हो सके। उन्होंने कहा कि वे टीएमबीयू में अपने कार्यकाल के दौरान जिस उम्मीद को लेकर अंगिका विभाग खुलवाए थे वह आज तक पूरा नहीं हुआ। 16 वर्षों में मात्र तीन छात्रों का शोध कार्य पूरा हो सका उन्होंने कहा कि अंगिका क्षेत्र राजस्थानी और बंगाली संस्कृति का भी क्षेत्र है, इनमें कोई शक नहीं है कि अंगिका भाषी इन दोनों से बहुत कुछ सीखा है और इससे बहुत कुछ भी मदद ले सकते हैं, इतना ही नहीं अंगिका भाषी विदेश में भी बसे हुए हैं उन्हें भी अंगिका भाषा पर शोध करने के लिए यहां आमंत्रित किया जाना चाहिए और उन्हें हर संभव मदद करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि अंग प्रदेश में अंगिका भोजनालय, अंगिका औषधालय और अंगिका पुस्तकालय खोलने की जरूरत है, जो अंगिका पर काम करने वाले लोगो को मदद करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अंगिका भाषियों की संख्या इतनी है कि उन्हें किसी सरकार या राजनेता का मोहताज बनने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार इस दिशा में कुछ नहीं करती है तो वे खुद अंगिका विश्वविद्यालय खोल कर उन्हें बता दें यदि आप अंगिका के लिए कुछ नहीं कर सकते हैं तो हम बिहार झारखंड के 21 अंग जनपदों के लोग खुद इस दिशा में सक्षम हैं । वहीं उद्घाटन सत्र में अंग प्रदेश के आध्यात्मिक गुरु स्वामी आत्मानंद जी ने भी इसी बात को दूसरी तरह बताया कि अंग प्रदेश देवभूमि थावे भूमि है और सदैव देवभूमि रहेगा उन्होंने इसे साधु संत और ऋषि-मुनियों का क्षेत्र बताया जो इस भूमि पर अंगिरास और अंगिरा ऐसे ऋषि होने का सबूत है।
वहीं महोत्सव के संयोजक गौतम सुमन ने अपने विचार रखे। उन्होंने बताया कि अब अंग महाजनपद के लोग अपनी चुप्पी तोड़ चुके हैं, इसलिए सरकार इनकी सहनशीलता को अब कायरता समझने की भूल न करें। समय रहते उन्होंने सरकार को सचेत होने का संदेश दिया और कहा कि यदि राज्य व केंद्र सरकार अंगिका को उनका समुचित सम्मान और अधिकार देने-दिलाने की दिशा में सकारात्मक पहल नहीं करेगी, तो आने वाले समय में वे अपनी कुवत के अनुसार चुनाव के समय अपने ताकत का इस्तेमाल करेंगे। मौके पर अंगिका को झारखंड में द्वितीय राजभाषा का दर्जा दिलाने में सक्रिय रहे गोड्डा के विधायक अमित मंडल ने कहा कि हमारी अंगिका तभी फले-फुलेगी जब अंगिका से नई पीढ़ी के लोगों को जोड़ा जाएगा और अंगिका अब सरकारी भाषा और जीविका का साधन भी बन चुका है। उन्होंने कहा कि हम सारे जनप्रतिनिधियों को एकजुट होकर अंगिका को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की पुरजोर कोशिश करनी होगी, तभी इस दिशा में हम सफल हो सकते हैं। वहीं झारखंड के ही पूर्व विधायक राजेश रंजन ने कहा कि जब झारखंड की सरकार ने दुनिया की प्राचीन भाषा अंगिका को समुचित सम्मान और अधिकार दिलाने की दिशा में सकारात्मक पहल कर रही है,तो बिहार सरकार इस दिशा में किंकर्तव्यविमूढ़ बनकर क्यों चुप्पी साधी हुई है,यह उनकी समझ से परे है। उन्होंने यह भी कहा कि जब हमें अंगिका भाषियों के वोट की जरूरत होती है तो हम इन्हीं अंगिका भाषियों का उपयोग कर वोट बटोरते हैं, तो हमारी नैतिक जिम्मेदारी बनती है चुनाव के बाद भी हम इस भाषा के लिए कुछ करें और करवाएं। इस सत्र को संबोधित करते हुए डॉ.शंभू दयाल खेतान ने कहा कि अंगिका भाषा के सम्मान और अधिकार के लिए सालों से आंदोलन चलता आ रहा है लेकिन अब तक उसे समुचित सम्मान और अधिकार नहीं मिलना दुर्भाग्यपूर्ण है। इस मौके पर पूर्व महापौर डॉ. बीणा यादव ने कहा कि अंग क्षेत्र के इस हॄदय स्थल स्थल भागलपुर की धरती पर अंगिका के विद्वानों का स्वागत करके उन्हें बड़ी खुशी मिल रही है। उन्होंने गर्व करते हुए कहा कि अंग क्षेत्र में विद्वानों की कमी नहीं है, आज यह महोत्सव इस बात को प्रमाणित कर रहा है। इस मौके पर पूर्व कुलपति डॉ.रामाश्रय यादव को उचितलाल सिंह सम्मान से सम्मानित किया गया और कहा कि निश्चित रूप से डाॅ.यादव अंगिका के अंगद ही हैं। महोत्सव के संयोजकमंडल के द्वारा 32 किलो के फूल माला से मंचस्थ विद्वानों को सम्मानित किया गया और कहा कि इस तरह अंग महाजनपद के सारे विद्वान यदि एक माला में एक साथ गूंथ जाए तो वह दिन दूर नहीं जब राज्य और केंद्र सरकार को भी इस अंगिका भाषी के आगे घुटने टेककर इसे संविधान के अष्टम अनुसूची में शामिल करना पड़ेगा। आज कार्यक्रम के दूसरे सत्र में गीत- नृत्य और गीत-गायन से शुरू हुआ जो नृत्यादि के माध्यम से लोक नृत्य झिझिया के बाद गोदना और जट-जट्टीन की प्रस्तुति हुई और इस माहौल में बसंत रस घोलकर रख दिया। दर्शक अंगिका नृत्य और गीत के साथ मंत्रमुग्ध कर नाचने-कूदने लगे। बस सबके मुंह पर एक ही बात थी कि इस तरह अंगिका का कार्यक्रम उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था। लोगों ने कहा कि अंगिका का इस तरह का कार्यक्रम हर महीने होनी चाहिए। लोगों ने यह भी कहा कि साल में महोत्सव यदि एक बार होता है तो हर माह जिले-जिले में इसे उत्सव के रूप में मनाना चाहिए। तत्पश्चात पोंगा पंडित नाटक, इस मौके पर विशेष रूप से मंजूषा प्रदर्शनी अंगिका किताबों की प्रदर्शनी और दंत रोग विशेषज्ञ डॉक्टर की ओर से स्वास्थ्य सेवा शिविर लगाया गया था। अंगिका महोत्सव में बिहार-झारखंड के लगभग 100 से अधिक साहित्यकारों ने भाग लिया। संस्कृति प्रेमियों की तो बात अलग ही थी। ज्यों-ज्यों शाम होता गया, लोग अंगिका रस में भीगते गए। रात कुछ और गुलाबी बनकर पूरे शहर में चर्चा का विषय बना दिया । इस मौके पर श्री मोहन सिंह, विकास सिंह गुल्टी, सुधीर कुमार सिंह प्रोग्रामर, विरेन्द्र सिंह, कैलाश ठाकुर, त्रिलोकीनाथ दिवाकर, लक्ष्मी नारायण मधुलक्ष्मी, सुधाकर पांडे, सौरभ पांडे, प्रीतम विश्वकर्मा,ब्रह्मदेव सिंह लोकेश, आदि कई लोग उपस्थित थे।