सकारात्मक सोच:- *कुंदन कुमार राय* हर खबर पर पैनी नजर।


रमेश शंकर झा

समस्तीपुर:- जिंदगी कोई इसे पहेली कहता है, कोई सुख का सागर, कोई दुख का दरिया।
इसे देखने का हर किसी का अपना नजरिया होता है।
ये दुनिया वैसी ही दिखती है, जैसा हम देखना चाहते है। हमारी परवरिश, माता-पिता, समाज, शिक्षा, आदर्श, मित्र और संगत की अनुभुति ही हमारा नजरिया बन जाता है। एक जूता बनाने वाली कंपनी ने अपने एक कर्मचारी को किसी टापू पर व्यवसाय विकास के लिए भेजा, वो अगले ही दिन वापस लौट गया और अपने मैनेजर से बोला सर वहाँ व्यवसाय विकास का कोई आसार नहीं है, क्योंकी वहाँ कोई चप्पल भी नहीं पहनता है।कंपनी ने फिर अपने दुसरे कर्मचारी को भेजा, अगले ही दिन वो भी वापस आ गया और अपने मैनेजर से बोला सर वहाँ तो व्यवसाय विकास की प्रबल संभावना है, क्योंकि वहाँ अभी तक चप्पल बनाने वाली कंपनी भी नहीं पहुँची है।


परिस्थितियाँ दोनो के लिए एक थी,पर सोचने का नजरिया अलग था। निजी जिंदगी में भी हमारे नजरिये का बहुत महत्व है। सुख और दुख भले ही जिंदगी का हिस्सा है पर सुख के पल पता नही कैसे बीत जाते हैं और गम के दिन मानो ठहर से जाते है। ईंसान की असली पहचान भी इसी समय पर होती है, जब जिंदगी मे सुख का सुरज निकलना बंद हो जाता है। उम्मीद की लौ थड़थड़ाने लगती है और परछाई भी साथ छोड़ देती है। नाकामीयों और नकारात्मकता के बादल एेसे छा जाते हैं कि ईंसान ये भी नहीं समझ पाता है के सही राह क्या है? जब हम उजाले से अंधेरे की तरफ जाते हैं तो कुछ समय तक साफ-साफ दिखना मुश्किल लगता है।
धीरे-धीरे हमें अंधेरे में भी चीजो को महसुस कर, समझ कर आगे बढ़ते हैं। इसी अंधेरे में खोकर कोई ईतिहास बन जाता है तो कोई उम्मीद का दामन थाम कर आगे बढ़ जाता है। अपना स्वर्णिम भविष्य लिखने, संघर्ष के बाद ही सफलता मिलती है।


और ये हम पर निर्भर करता है के हम कौन सा रास्ता अपनाते हैं। मन के हारे हार है मन के जीते जीत। जब तक हम खुद हार ना मान ले हमें कोई हरा नहीं सकता। हर सफलता के पीछे असफलताएँ भी जुडी़ रहती है। असफलता से भाग कर नहीं उसका सामना करके ही जीता जा सकता है। जिसके लिए सकारात्मक नजरिया का होना आवश्यक है।
मान लिजिए के हम किसी विवाह समारोह मे जाते हैं
तो हम उन्ही पकवानों से अपनी थाली सजाते हैं जो अच्छे दिखे और हमें पसंद हों, तो हम अपनी जिंदगी को अच्छे विचार, संस्कार, सम्मान, व्यक्तित्व, और सकारात्मक सोच से क्यों नहीं सजाते? क्योंकी हम बदलना नहीं चाहते है। हम दुसरों की आलोचना करने में समर्थ हैं पर स्वालोकन में असमर्थ हैं। यही धीरे-धीरे हमारी नकारात्मक विचारधारा और बाद में हमारा चरित्र बन जाता है।


अगर हम करीब से देखें तो हर सफल ईंसान कभी ना कभी कठिन दौर से गुजरा है, गिरा है, सम्भला है, आगे बढा है और सफलता के किर्तीमान स्थापित किया है। विफलता के बिना सफलता का कोई मोल नहीं। हर दुख आने वाले सुख का प्रतिनिधित्व करती है और हर काले घने बादल के पीछे सुनहरी धूप होती है।

सकारात्मकता और 
नकारात्मकता हमारे अंतरमन मे निहीत है, यह हम पर है के हमें किस नजरिये को अपनाना है। सुरज की हर किरण रात की कालिमा को दुर करती हुई एक नये दिन की शुरुआत करती है। वैसे ही आपकी सकारात्मक सोच नकारात्मकता को दुर कर नव जीवन संचार करती है।


हमारा जीवन एक तस्वीर है इसे मनचाहे रंग से रंगना चाहिए। अनचाहे रंगो से नहीं
सकारात्मक के विकास के लिए कोई उम्र की सीमा नहीं, जरुरत है तो बस:-
1.स्वेच्छा एवं आत्मविश्वास बढाइए
2.अपनी और दुसरों की गलतीयों से सीखें एवं उसको दुहराएँ नहीं
3. सकारात्मक बदलाव को स्वीकारें एवं आधुनिकता से जुड़ें
4.अच्छे ग्रूप का हिस्सा बनें, योगा, मेडीटेशन, जिम, फिटनेस क्लब, फन क्लब ईत्यादि से जुड़ें
5.आचार, विचार, व्यवहार ,पहनावा, पर ध्यान दें और मुस्कुराहट को जीवन मे स्थान दें
6.अपने शौक़ जैसे बागवानी, लेखन, प्रकृति प्रेम, पाककला, गायन, ईत्यादि को नया आयाम देने की कोशिश करें
7.अपने आस पास सकारात्मक माहौल बनाएं और एेसे ही लोगों को अपनी जिंदगी का हिस्सा बनाएं
8.डायरी लिखे, सकारात्मक सोच से जुड़े साहीत्य पढ़ें, सकारात्म विचारों वाली फिल्में देखें
9.अपनी कमियों से डरे नहीं बल्कि उसे अपना हथियार बनाएं और आगे बढ़ते रहे, सफलता भी संघर्षशील इंसान का रास्ता देखती है।

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