संजीव मिश्रा
भागलपुर/सबौर:- जिले में कई ऐसे धार्मिक धरोहर हैं जिनका इतिहास पौराणिक तो है ही लोगों के आस्था का केंद्र भी है। उनमें से भागलपुर का बूढ़ानाथ मंदिर, सबौर का सितलास्थान , बैजलपुर पंचायत के
शिवायडी ह का ब्रह्मस्थल कई ऐसे धार्मिक स्थल है जो लोगों के आस्था का केंद्र बने हुए हैं ।
आज हम भागलपुर के बूढ़ानाथ मंदिर की चर्चा करेंगे जो शक्तिपीठ में एक है ।
शहर में अवस्थित बूढ़ानाथ मंदिर धार्मिक धरोहर के रूप में समृद्ध व विश्व विख्यात है। इस मंदिर में अन्य दिनों में भी पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है। वहीं महाशिवरात्रि आदि अन्य मौके पर पूजा-अर्चना के लिए श्रद्धालुओं का इस मंदिर में लंबा तांता लगता है। धार्मिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले इस धरोहर को विकसित कर पर्यटक स्थल बनाया जा सकता है और वे पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने में कामयाब हो सकते है।
मंदिर का इतिहास
इस मंदिर की स्थापना त्रेता युग में हुआ था। बक्सर से ताड़का सुर का वध करने के बाद वशिष्ठ मुनी अपने शिष्य राम और लक्ष्मण के साथ भागलपुर आए थे और उसी समय यहां उन्होंने बूढ़ानाथ मंदिर की स्थापना कर शिवलिंग की पूजा-अर्चना की थी। शिव पुराण के द्वादश अध्याय में भी इसका वर्णन है। इसी मंदिर के नाम से ही मोहल्ले का नाम भी बूढ़ानाथ रखा गया है। बक्सर में ताड़का सुर के वध करने के बाद वशिष्ठ मुनी अपने शिष्य भगवान रामचंद्र एवं लक्ष्मण के साथ भागलपुर आए थे। बूढ़ानाथ मंदिर की स्थापना त्रेता युग में वशिष्ठ मुनी और उनके शिष्य रामचंद्रजी एवं लक्ष्मण ने किया था। 50 हजार रुपये से अधिक का फूल-माला चढ़ाया जाता है। शिवरात्रि के संपन्न होने के बाद दूसरे दिन मंदिर के पूछे सूखे नदी-नाला में फूल-माला फेंक दिया जाएगा। प्राप्त जानकारी के अनुसार पंडित ब्रह्मादेव दुबे, बूढ़ानाथ मंदिर के प्रमुख पुजारी व पंडित भैरव मिश्र, बूढ़ानाथ मंदिर के पुजारी हैं।