*क्या अंक प्रतिशत ही ज्ञान अर्जन का पैमाना है:- कृष्णा कुमार।* हर खबर पर पैनी नजर, (IPN) इंडिया पब्लिक न्यूज

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पटना:- सीबीएसई मैट्रिक, इंटर परीक्षा का परिणाम हुआ प्रकाशित। जिन बच्चों ने 90% से ऊपर अंक पाए उन्हें परिवार वाले के साथ-साथ समाजों ने पुरजोर तरीके से अपनाया। वहीं 70% अंक वाले तक का भी स्वागत हुआ। लेकिन 60% प्रतिशत वाले तक को हिदायतें मिली। फेसबुक, व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम एवं अन्य सोशल साइट्स प्लेटफॉर्मो पर तीन दिन से मैंने बड़ी कोशिश की है तस्वीर खोजने कि की कोई द्वितीय, तृतीय स्थान या कुछ अंको से प्रथम स्थान पाने वाला मुँह में मिठाई लिए परिवार और समाज का अभिवादन पा रहा हो, लेकिन अभी तक मैं असफल रहा।

मैं अमूमन तौर पर किसी से रिजल्ट पूछता नहीं लेकिन कल एक पढ़ाए हुए बच्चे को फोन से उसका रिजल्ट पूछ लिया, इसलिए पूछा कि उसके पास होने पर मुझे संदेह था। उसने बताया सर जस्ट फर्स्ट डिवीजन आया और फोन रख दिया लेकिन बाद में किसी अन्य स्रोत से पता चला बच्चा सेकेंड डिवीजन है। मुझे बड़ी चिंता हो रही है, साथ ही साथ डर भी है “शिक्षा कहीं तनाव का स्वरूप ना ले ले”। सूचना मिली है कई परिवारों में तो माता-पिता द्वारा मानसिक रूप से प्रताड़ित भी किया है। सेकंड या थर्ड आना गुनाह तो नहीं?

कृष्णा कुमार

कमोबेश उस मिठाई पर उनका भी अधिकार है, सम्मान का हकदार तो वो भी हैं। अगर सेकंड, थर्ड आना अपराध है तो अपराध का जिम्मेदार इन दोनों स्थानों को गढ़ने वाले हैं, सज़ा उन्हें मिलनी चाहिए। शिक्षा नीति में परिवर्तन कर प्रथम या फेल की पद्धति अपनाई जानी चाहिए या समाज को अपनी विकृत मानसिकता में बदलाव लानी चाहिए। जिस कठिन समय में बच्चों को अपने माता-पिता की अत्यधिक आवश्यकता है उस समय उन्हें तिरस्कृत किया जा रहा है। जबकि दूरगामी सोच के साथ उन्हें बच्चों के साथ खड़ा रहना चाहिए।

यही कारण है शिक्षा बोझ बनता जा रहा है। बच्चे शॉर्टकट रास्ता अपना रहे हैं। माता-पिता बच्चों के नम्बर को अपने मान-सम्मान, प्रतिष्ठा से जोड़ रहे हैं। मैं समझता हूँ  90% से अधिक 50% या उससे कम अंक प्राप्त करने वाले को ऊर्जावर्धन, प्रोत्साहित करने की जरूरत है। अगर हमारे परिवार के बच्चे को पड़ोसी या जाननेवाले से अधिक अंक प्राप्त हुआ तो उनको नीचे दिखाने, अपने बच्चों का बड़ाई छांटने का रिवाज तो हमारा पुराना रहा है। इससे बच्चे हीन भावना से ग्रसित होने लगते हैं। मछली के पेड़ पर चढ़ने से उसकी काबिलियत आँकी नहीं जा सकती। इसलिए टॉपर का अभिवादन करने से बेहतर है औसतों के संघर्ष का साथी बनना। औसत विद्यार्थी अंक के रेस में जीतेगा या नहीं जीतेगा ये मैं नहीं जानता। लेकिन इतना जानता हूँ जिंदगी के रेस में, मानवता के रेस में जरूर जीतेगा। फर्स्ट बेंचर तो परिवार पालते हैं लेकिन बैक बेंचर समाज का पालनहार होता है और यही अबतक का इतिहास रहा है। विकसित समाज का निर्माण कुछ एक के बेहतरीन होने से नहीं सबों के बेहतर होने से बनता है।

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