*संसार में सभी स्वार्थ बस एक दूसरे से प्रेम करते हैं, ईश्वर का प्रेम ही ऐसा है कोई स्वार्थ है ना कोई भेदभाव, हर खबर पर पैनी नजर।* इंडिया पब्लिक न्यूज…

रमेश शंकर झा,

समस्तीपुर:- जिले के विभूतिपुर प्रखंड क्षेत्र के साखमोहन में भगवान अवध बिहारी का 13 दिवसीय झूला उत्सव कार्यक्रम का प्रारंभ किया गया। इस कार्यक्रम की शुरुआत शंख ध्वनि से हुआ। तत्पश्चात गद्दी महंत राम भजन दास ने अपने संबोधन में कहा कि मानव का ईश्वर के साथ प्रेम ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिए उसी की कडी में सदियों से महंतों द्वारा ऐसे कार्यक्रम का आयोजन होते आ रहा है।

यह हमारे आत्मिक भक्ति स्नेह एवं आनंद का महत्वपूर्ण उदाहरण है। वहीं ईश्वर के साथ प्रेम, अनुराग, श्रद्धा और मानवीय रिश्तो जैसा व्यवहार ही परमसुख है।

हमें भौतिक एवं परलौकिक सुखो की प्राप्ति के लिए ईश्वर से संबंध स्थापित करना चाहिए तभी इससे दोष राग की भावना से ऊपर उठ सकेंगे। इस कार्यक्रम के सुअवसर पर पूर्व लोकसभा प्रत्याशी डॉ० शंभू कुमार ने कहा की ईश्वर के प्रति हमारा अटूट विश्वास ही एकमात्र जीवन का लक्ष्य है।

इस नश्वर संसार में सभी स्वार्थ बस एक दूसरे से प्रेम करते हैं, किंतु ईश्वर का प्रेम ही ऐसा है जहां ना तो कोई स्वार्थ है ना कोई भेदभाव अगर कुछ है भी तो वह हमारे द्वारा भेदभाव बनाया गया है। आज लोग धर्म के प्रति वास्तविक भावना से दूर संकुचित होकर दिखावे की ओर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।

उसी का परिणाम है कि आज मंदिरों से हमारे आराध्य भगवान की चोरी, महंतो की हत्या और संपत्ति का अतिक्रमण करने के लिए साजिश होते रहते हैं। जिसका कोई देखने और सुनने वाला नहीं है समय रहते समाज और सरकार इस धार्मिक धरोहर की रक्षा नहीं कर पाए तो हमारे अतीत का गौरव मंदिर कालनेमि जैसे मायावी एवं अहम के देवता रावण का मंदिर बनकर रह जाएगा।

आज जरूरत है त्यागी, समर्पित, इमानदार व्यक्ति की जो मंदिरों के लिए दुतिया के चांद जैसा साबित हो रहे हैं। उसी का परिणाम है या प्रमाणीकरण है की पहले मंदिरों में जहां आठ दस महात्मा रहते थे आज बैरागी का 90% स्थान में कोई सांझ देने वाला नहीं है।

मैं समाज के लोगों से निवेदन करता हूं की सदियों से चली आ रही परंपरा को कायम रखने के लिए अपने पुत्रों को संतों की सेवा में भगवान की आराधना में समर्पित करने का हिम्मत दिखाएं तकि यह परंपरा कायम रह सके और सदियों से दीन हीन राहगीरों भूले भटको की सेवा करते आया है और आगे भी करता रहे।

मध्यकालीन भारत में मंदिर अर्थ एवं शिक्षा के मुख्य केंद्र थे शिक्षा तो सदियों से ऋषि मुनियों के द्वारा प्रदान करने का उदाहरण रामायण, महाभारत, उपनिषद इत्यादि ग्रंथों में मिलते हैं। इस कार्यक्रम के अवसर पर रामजतन सिंह, रामाकांत सिंह, बम बम सिंह, चंदन सिंह, दिनेश महतो के अलावे सैकड़ों की संख्या में भगवान के भक्त व शिष्य शामिल थे।

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