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समस्तीपुर/ताजपुर:- इस शीतलहर के मौसम में
राई, सरसों की खेत में लाही कीट (मस्टर्ड एफिड) का आक्रमण देखा जा रहा है। राई, सरसों में लगने वाले प्रमुख कीट के प्रबंधन हेतु कृषि समन्वयक पंकज कुमार ने ताजपुर प्रखंड के हरिशंकरपुर बघौनी पंचायत के किसानों को बताया कि लाही कीट सरसों का प्रमुख कीट है। जिसके आक्रमण से राई, सरसों में 70-80 प्रतिशत तक क्षति होती है। कीट का आक्रमण आमतौर से मध्य दिसंबर के बाद शुरू होता है, परंतु इनकी संख्या जनवरी, फ़रवरी में काफी बढ़ जाती है।
यह राई ,सरसों के फसल को काफी बर्बाद करने की स्थिति में आ जाती है। प्रायः आकाश में बादल छाये रहने, हल्की वर्षा होने तथा तापमन गिरने पर इनका आक्रमण निश्चित रूप से बढ़ जाता है। साथ ही इस प्रकार के मौसम में तेज प्रजनन में भी सहायक होता है।
यह कीट जो पीला, हरा या काले, भूरे रंग का मुलायम पंख युक्त तथा पंख विहीन कीट होता है। इस कीट का शिशु एवं वयस्क दोनों मुलायम पत्तियों, टहनियों, तनो, फूलों तथा फलियों से रस चूसते हैं।
लाही से आक्रांत पत्तियों मूड़ जाती है, फूलों पर आक्रमण की दशा में फलियां नहीं बनती है। यह मधु जैसा पदार्थ त्याग भी करता है। जिस पर काले फफूंद उग जाते है। इसके कारण पौधों की प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया प्रभावित होती है। इसके मादा बिना नर कीट से मिले शिशु कीट पैदा करती है, जो 5 से 6 दिन में परिपक्व होकर प्रजनन शुरू कर देते है। इस प्रकार लाही कीट के आक्रमण की अधिकता होने पर पूरा पौधा ही लाही कीट से ढंका दिखाई देता है।
समेकित कीट प्रबंधन:-
०१. केवल अनुसंशित किस्मों की बुआई करें, ०२. फसल की बुआई समय पर करें (हथिया वर्षा के तुरंत बाद करें ताकी लाही के प्रकोप से फसल को बचा सकें), ०३. जहाँ तक संभव हो बुआई कार्ये मध्य अक्टूबर तक अवशय कर लेना चाहिए, ०४. नेत्रजनीय उर्वरक का प्रयोग अनुसंशित मात्रा में ही करें, ०५. खेत को खर-पतवार से मुक्त रखें, ०६. लाही का प्रकोप अगर दिखाई देना शुरू हो जाय तो उसी समय उसे डण्ठल समेत तोड़कर एक पॉलीथिन के थैले में रखते जाये जिसे बाद में नष्ट कर दे, ऐसा लगातार 5-6 दिनों तक किया जाए तो फसल को कम से कम क्षति होने की संभावना रहती है, साथ ही छिड़काव के खर्च से भी बचा जा सकता है।
०७. पिला फंदा का प्रयोग 4 प्रति एकड़ करें,
०८. नीम अधारित कीटनाशी एजाडीरैक्टिन 1500 पी. पी.एम. का 5 एम. एल. प्रति लीटर पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें।
०९. कई बार लाही के साथ-साथ अच्छी संख्या में परबक्षी या परजीवी कीट नजर आते है, आमतौर पर ‘लेडी बर्ड बीटल’ नामक भृंग जिनकी पीठ पर कई छोटे-छोटे काले धब्बे होते है जो लाही को खाते है, ऐसी स्थिति में किसानों को किसी प्रकार की दवा फसल पर व्यवहार करने की आवश्यकता नहीं है, ये पराभक्षी कीट स्वयं लाही को नियंत्रित कर देते है, १०. अगर पराभक्षी कीट इत्यादि दिखाई न दे तो तब ही रासायनिक दवा का छिड़काव करें
अगर इन सब उपायों से लाही कीट का प्रबंधन नहीं होता है तो अंत में रासायनिक दवा में इमिडाक्लोरोपीड 17.8 एम. एस. एल. का 1 एम.एल.प्रति 3 लीटर पानी में घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव करने की सलाह दिया।