फिजियोथेरपी से लकवा का इलाज है सम्भव:- *डॉ० नीरज कुमार।* हर खबर पर पैनी नजर।

वन्दना झा

समस्तीपुर:- लकवा का फिजियोथेरपी से इलाज है सम्भव समस्तीपुर के जाने माने डॉ० नीरज कुमार ने बताया कि लकवा में फिजियोथेरेपी बहुत कारगर इलाज है। मरीजों में मांसपेशियों और हड्डियों को रिलैक्स करने में फिजियोथेरपी कारगर साबित होती है। अतः जितनी जल्दी सम्भव हो, थेरेपी शूरु कर देनी चाहिए। अगर मारिज की वाइटल्स की स्थिति बेहतर है तो स्ट्रोक के दूसरे दिन से ही फिजियोथेरेपी से फायदा होगा। वहीँ प्रारम्भ में मरीज को रोजाना 10 से 15 मिन्ट्स हर 2 से 3 घंटे पर एक्सरसाइज कराते रहना चाहिए। मरीज की स्थिति के अनुसार समय में वृद्धि की जाती है। यह मारिज के इच्छाक्ति पर निर्भर करता है कि वह ठीक होने में कितना समय लेंगे। कई मरीज 3 माह में भी ठीक हो जाते हैं तो कुछ को 6 माह से 3 साल तक लग सकते हैं। *सही पोस्चर है जरूरी:-* ०१. सबसे पहले डॉ० मरीज को पोजीसन और पोस्चर के बारे में बताते हैं, जैसे लेटने और करवट लेने के सही तरीके, बेड या कुर्सी पर बैठा कर पैर और हाँथ के मूवमेंट करना। ०२. फिर उन्हें उठने व बैठने के लिए बैलेंस बनाना सिखाया जाता है। क्योंकि सिर और शरीर का बैलेंस न हो, तो उसे चलने में दिक्कत होगी, वह गिर भी सकता है। ०३. बैलेंस बनाने के लिए मरीज को जमीन पर बिछे (मैट) चटाई पर दोनों तरफ से रोलिंग कराई जाती है, चाहे वह लकवा किसी साइड हो। ०४. घुटनों के बल और हाँथ के बल बैठने का अभ्यास कराते हैं ,जैसे छोटे बच्चे घोड़ा बनकर खेलते हैं। इससे शरीर का भार हाँथ पैर पर पड़ता है। जिससे जोड़ों में सेंसेशन बढ़ती है। मांसपेशियों में ताकत आती है। उससे शरीर के विभिन्न भागों खासकर गर्दन को कंट्रोल में लाती है। इससे बाद में मरीज को चलने में मदद मिलती है।

०५. मरीज को घुटनों के बल बैठाना, खड़ा होना आदि बताया जाता है। जिससे बॉडी बैलेंस बनाने में मदद मिलती है। ०६. हांथों की फाइन मूवमेंट लेन के लिए एक्सरसाइज कराई जाती है। उनपर वजन डाला जाता है, ताकि उसकी मांसपेशियां ठीक तरह से काम करे, जैसे किसी चीज को धक्का देना, खींचना या कोई चीज उठाकर एक जगह से दूसरी जगह रखना आदि। फाइन मूवमेंट के लिए क्ले खेलने को दिया जाता है। आटा गुथने को कहा जाता है, छोटे-छोटे फाइन मूवमेंट कराये जाते हैं, जैसे चावल, चने का दाना एक जगह से उठा कर दूसरी जगह रखना आदि। ०७. जिस पैर में लकवा हुआ हो उस पर वजन डालने और खड़े होने के लिए कहा जाता है, ताकि उसका बैलेंस बने औऱ उसमें मजबूती आये। ०८. वाकर के सहारे धीरे-धीरे चलाया जाता है शूरु में मरीज एक दो स्टेपस ही चल पाता है, पर बाद में मांसपेशियों के सबल होने पर वह आसानी से चल पाते हैं। ०९. साथ में कुछ विशेष तकनीकी माध्यमो से भी एक्सरसाइज कराई जाती है, जो मरीज के फंक्सनल आउटकम को बढ़ाता है और जीवन सुचारू रुप से जीने में मदद करता है।

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