*पी के का बयान, बिहार राजनीति में कड़ाके की सर्दी में भी गर्मी का एहसास करा गए। हर खबर पर पैनी नजर।*

संजीव मिश्रा

भागलपुर/सबौर:- नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का जब पार्टी लाइन से हटकर जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर (पी के) ने विरोध किया तो प्रदेश जदयू नेताओं ने उनके खिलाफ खूब अनाप-शनाप बयान दिया। वहीँ जदयू के एक दिग्गज नेता ने तो जदयू में प्रशांत किशोर (पी के) की हैसियत पर ही सवाल खड़ी कर दी। जब मामला प्रशांत किशोर के इस्तीफे तक पहुंच गया।

ये अलग बात रही कि जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पूरे मामले पर मौन रह रहे है। खिचखिच होता देख प्रशांत किशोर (पी के) अपना इस्तीफा लेकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास पहुंच गए। दोनों ने अकेले में गुफ्तगू की और प्रशांत किशोर (पी के) का इस्तीफा नामंजूर कर दिया गया। वहीँ प्रशांत किशोर की बातों से मुख्यमंत्री सहमत हो गए और प्रदेश के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने घोषणा कर दी कि प्रदेश में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) लागू नहीं किया जाएगा। प्रशांत किशोर (पी के) ने प्रदेश के दिग्गज जदयू नेताओं को जोर का झटका दिया और सबको अपनी भी और उनकी भी राजनीतिक हैसियत दिखा दिया।

अभी यह मामला शांत भी नहीं हुआ था कि पी के ने यह कहकर प्रदेश की राजनीति में खलबली मचा दी कि आगामी विधानसभा चुनाव में जदयू- भाजपा के बीच फिफ्टी-फिफ्टी का फार्मूला नहीं चलेगा। जदयू को प्रदेश में अधिक सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए, प्रदेश में जदयू सीनियर पार्टी है। ये अलग बात है कि पी के के बयान का किसी अन्य जदयू नेता ने समर्थन नहीं किया है। इसका कारण शायद जदयू में पी के का बढ़ता कद भी हो। इस मामले पर भी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार एवं प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने चुप्पी साध रखी है। यह चुप्पी अपने आप में बहुत कुछ कहता है।

पी के के बयान पर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने ट्वीट कर कहा कि “जो लोग किसी विचारधारा के तहत नहीं बल्कि चुनावी डाटा जुटाने और नारे लगाने वाली कंपनी चलाते हुए राजनीति में आ गए, वो गठबंधन धर्म के विरुद्ध बयान बाजी कर विरोधी गठबंधन को फायदा पहुंचाने में लगे हैं। एक लाभकारी धंधे में लगा व्यक्ति पहले अपनी सेवाओं के लिए बाजार तैयार करने में लगता है, देश हित की चिंता बाद में करता है।”

उपमुख्यमंत्री के ट्वीट का पी के ने भी तत्काल जवाब दिया कि “बिहार में नीतीश कुमार का नेतृत्व और जदयू की सरकार में बड़े दल की भूमिका है, बिहार की जनता ने तय की है। किसी दूसरे पार्टी के नेता या शीर्ष नेतृत्व ने नहीं। 2015 में हार के बाद भी परिस्थितिवश डिप्टी सीएम बनने वाले सुशील मोदी से राजनीतिक मर्यादा और विचारधारा पर व्याख्यान सुनना सुखद अनुभव रहा।”

पी के ने सुशील मोदी को “परिस्थितिवश डिप्टी सीएम” बनने वाले कह कर प्रदेश की राजनीति में इस भीषण सर्दी में भी गर्मी ला दी है।
अभी तक पी के के समर्थन में किसी भी जदयू नेता ने कोई बयान नहीं दिया है।लेकिन क्या इसे पी के का निजी बयान समझा जाए या फिर पी के ये सब एक योजना के तहत कर रहे हैं।जिसकी पटकथा पी के और पार्टी के सबसे बड़े नेता ने झारखंड विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद लिखी है।लेकिन इतना तो तय है कि पार्टी में पी के का कद दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है।आने वाले समय में पी के जदयू के सारे दिग्गज नेताओं को छोड़ दूसरे नम्बर पर सबसे आगे निकलते हैं नजर आ रहे हैं।

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