संजीव मिश्रा
भागलपुर/सबौर:- नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ देश के कई प्रदेशों में प्रदर्शन जारी है।प्रदर्शनकारियों के द्वारा आगजनी सहित हिंसक कार्रवाई लगातार की जा रही है। दूसरी ओर उन प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस के द्वारा बर्बरतापूर्ण कार्रवाई भी लगातार की जा रही है। देश के कुछ हिस्सों में कुछ लोगों के मारे जाने की भी सूचना मिल रही है। मृतक कहीं प्रदर्शनकारियों के द्वारा की गई हिंसा के शिकार हुए हैं, तो कहीं पुलिस फायरिंग से। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में हिम्मत है तो संयुक्त राष्ट्र की निगरानी में नागरिकता कानून पर जनमत संग्रह कराएं। दिल्ली सहित पूरा देश इस कानून के विरोध या फिर समर्थन की आग में झुलस रहा है।
केंद्र सरकार जहाँ हर हाल में इस नागरिकता कानून और एनआरसी को लागू करने की बात कह रही है तो वहीं विपक्ष किसी भी हालत में इसे लागू नहीं होने देने की बात कर रहा है। निश्चित रूप से इस कानून का समर्थन या विरोध करने से पूर्व इस बात को समझना जरूरी है। आखिर नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 क्या कहता है। “नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 के मुताबिक 31 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता प्रदान की जा सकती है। वहीँ भारतीय नागरिकता प्रदान करने की आवश्यक शर्त पहले 11 वर्ष तक भारत में रहना था। जिसे इस अधिनियम में 6 वर्ष तक भारत में रहने की शर्त के रूप में बदल दिया गया है। इस अधिनियम की सबसे खास बात यह है कि इस अधिनियम में मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है। जबकि एनआरसी के जरिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देश के बाहर करना है। इसका मतलब स्पष्ट तौर से यह है कि इस विधेयक के मुताबिक गैर मुसलमानों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना एवं अवैध विदेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना है।”
असम में प्रकाशित एनआरसी के अनुसार लगभग 19 लाख लोगों का नाम रजिस्टर में नहीं है। इनमें करीब 14 लाख गैर मुस्लिम हैं। इनमें लाखों ऐसे लोग हैं, जो वर्षों से यहाँ रह रहे हैं। पूर्वोत्तर राज्यों में इस कानून के विरोध की एक प्रमुख वजह यह है कि यदि इन शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिल जाती है, तो फिर सरकार इन्हें कहां बसाएगी और ये क्या रोजगार करेंगे। जबकि हमारे देश में दिनोंदिन बेरोजगारी बढ़ती ही जा रही है। अब ये सोंचने और समझने वाली बात है कि क्या ‘सीएए’ और ‘एनआरसी’ हमारे संविधान की मूल भावना के खिलाफ है? क्या यह कानून धर्म के आधार पर भेदभाव को बढ़ावा देता है? क्या यह कानून देश को धार्मिक आधार पर बांटता है? सरकार का कहना है कि इस कानून का किसी भी धर्म के भारतीय नागरिक से कोई लेना देना नहीं है। फिर आखिर कौन सही हैं, सरकार या फिर वो जो इस कानून का विरोध कर रहे हैं?
पूरे देश में जो आग लगी है, उसे शीघ्र बुझाना होगा। इस विवाद को शीघ्र सुलझाना होगा। आग कहीं भी लगे, आग किसी के भी घर में लगे, किसी भी कार्यालय में लगे, नुकसान तो हमारा ही होगा, हमारे (भारत) हिंदुस्तान का ही होगा। लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान ने ठीक ही तो कहा है कि “एन आर सी के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे लोगों को समझाने की जिम्मेदारी भी सरकार की है।सहयोगी होने के नाते लोकजनशक्ति पार्टी आग्रह करती है कि प्रदर्शनकारियों से संवाद कर उनकी चिंताओं को दूर करें।” दूसरी तरफ लागातर यूपी सरकार दंगाइयों को सबक सिखा रही है जो वास्तव में सही है क्योंकि दंगे करने वाले या फैलाने वाले को कोई हक नही है कि वो दंगा में सरकार व सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुचाये। हम समर्थन करते हैं योगी सरकार की जिसकी सख्त संदेश दे रहे हैं।
दूसरी ओर बिहार सरकार नीतीश कुमार ने इस बिल को लागू करने से साफ मना कर दिया है। हमारी सरकार को पूरे देश में लगी इस आग को बुझाने के लिए यथाशीघ्र प्रयास करने चाहिए। सरकार को यह समझना होगा कि ये विरोध करने वाले भी हमारे अपने ही हैं। इन्होंने और इनके पूर्वजों ने भी अपने खून पसीने से हमारे देश की मिट्टी को सींचा है। आवश्यकता है एक दूसरे को समझने की।हमारे सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वो विरोध को कुचले नहीं, उनसे संवाद करें और उन्हें भरोसे में लें।