बिहार डेस्क
बिहार पुलिस एसोसिएशन के अध्यक्ष मृत्युंजय कुमार सिंह ने बताया बिहार पुलिस की व्यथा कथा। पुलिस का औचित्य समाज, सरकार, न्यायालय को किस लिए है । पुलिस का मूल कर्तव्य क्या है । कर्तव्य की शैली क्या है।पुलिस का ढाँचा क्या है । ऊपर लिखे कुछ बिंदुओं पर गहराई से समझ कर चिंतन करने की ज़रूरत है । आज देश में कही भी कुछ घटनाए होते ही पुलिस व मीडिया हो या आम प्रबुद्ध लोग आवाज़ उठाने लगते है और पुलिस को कटघरे में खड़े कर देते है ।
घटनाएँ रोकना पुलिस का कर्तव्य है । परन्तु आवाज़ उठाने वाले का भी तो एक जवाबदेह भारतीय होने के नाते कुछ सूचना – सपोट पुलिस को करना चाहिए । घटना के उद्भभेदन होने पर पुलिस की पीठ थपथपा ने की संख्याए कम दिखती है। लोग पुलिस का कार्य समझते है । हम भी कार्य मानते है । परन्तु बहादुरी के साथ जान को जोखिम में डाल कर कार्य करने वाले पुलिस का सम्मान तो होना चाहिए । कभी – कभी दिखता भी है । परन्तु ए सचाई है की वीरता के साथ कार्य करते शहीद पुलिस वाले का परिवार पुलिस विभाग हो या समाज हो क़द्र की कमी और परेशानी महसूस करता है ।
यह सत्य है की पुलिस न्याय के लिए नहीं एक्शन के लिए है, एवं साक्ष्य इकट्ठा कर न्यायालय को सौंपने के लिए है। न्याय सुनिश्चित करना न्यायलय का काम है। हमारे बहुत सारे मित्र पुलिस उपाधिक्षक या थानाध्यक्ष होंगे या रहे होंगे।त्वरित करवाई अपराधियों में खौफ पैदा करता है, घटनायें रोकने में तथा साक्ष्य नष्ट होने से बचाने में तो मदद करता ही है ,साथ ही साथ पीड़ित और जनता को संतोष प्रदान करता है।आमजन को मालूम होना चाहिए कि पुलिस भगवान नहीं कि सभी घटनाओं को रोक ले पर दमदार पुलिसिया करवाई अपराधी के ऊपर मजबूत छाप छोड़ता है।
न्याय तो अंतिम पायदान है जो एक प्रक्रिया से गुजर कर ही निश्चित होगा ,परन्तु एक्शन प्रथम और सबसे दमदार चीज है। अब पुलिस का एक्शन सिर्फ फिल्मों में देखने को मिल रहा है।रील लाइफ में , रियल लाइफ में नहीं। इसके पीछे कारण क्या है … समझना और सुधार करना ज़रूरी है । प्रश्न भी मुँह बाएँ खड़ा है की इसमें सुधार करेगा कौन पुलिस मुख्यालय या सरकार या दोनो ..? । पुलिस के निचले पंक्ति को मज़बूती के साथ कार्य करने का फ़्रीडम देना होगा ।
कुछ छोटी – मोटी ग़लती भूल को इग्नोर करना होगा । ये सचाई है की जो कार्य करेगा उसी से ग़लती होती है । परन्तु आज के तारीख़ में पुलिस की ग़लती छोटी क्यों न हो वरीय अधिकारी अपने से कनिय को पनिस्मेंट देने में अपनी शान समझते है । अतीत के वर्षों में ए बात नही थी । पुलिस के सुस्त होने का कारण चाहे जो भी हो दूर तो करना ही होगा। जिले में नीचे के पंक्ति के पदाधिकारियों में पुलिस अधीक्षक को एक बेहतर परिवार के अभिभावक का चेहरा दिखना चाहिए।
साथ ही साथ किसी घटना या कर्तव्य के मुद्दे पर अंतिम परिणाम तक साथ देना होगा । होता है की कोई घटना घटित हुई हंगामा हूवा ,दबाव बना तो तुरंत पुलिस अधीक्षक नीचे के पंक्ति का साथ छोड़ कर करवाई कर देते है और बोलते है की हंगामा शांत होने पर सब ठीक कर देंगे। यदि पुलिस वाला कर्तव्य पर सत्य के क़रीब है तो उसके साथ खड़ा होना पड़ेगा । पुलिस मुख्यालय हो या सरकार हो या मीडिया हो सत्य से अवगत करना होगा । यदि एसा सपोट नहीं मिलेगा , जब तक इसका अभाव कनिय पुलिस को दिखेगा तब तक जान जोखिम में डाल कर कार्य से कनिय पुलिसकर्मी हिचकेगे । आज के डेट में बिहार हो या देश हो हज़ारों – हज़ार पुलिस वाले बिना ग़लती के जिले के वरीय पुलिस अधिकारी के ग़लती के चलते सज़ा के साथ गुनहगार हो जाते है । राजनेता की लोकप्रिय कितनी क्यों न हो …जो जनता उनको चुनती है उन्ही के बीच बिना पुलिस के नही घूम – फिर सकते। वे भी पुलिस की पीड़ा या समस्या से अवगत होकर सदन में कभी उनकी मूलभूत समस्या में सुधार – बदलाव के लिए प्रश्न उठाकर निदान नही करते। उनको भी आगे आने की ज़रूरत है । लोकतंत्र की मज़बूती , क़ानून की रक्षा और जनता की सुरक्षा के साथ एक विकसित गाँव , राज्य और देश के लिए एक आधुनिक रूप से सुसज्जित पुलिस की ज़रूरत है । कानून को इतना सख्त बनाओ की कोई तोड़ने की सोच न सके ।
यदि तोड़े तो सज़ा के बाद कभी सोचे नही। विकसित देश में न कोई रेडलाइट तोड़ता है न कोई गलत जगह गाड़ी पार्क करता है। घर कई कई किलोमीटर तक नही है पर कोई किसी के घर में घुसकर लुटता नही है। कहीं पुलिस दिखाई नही देती फिर भी कानून का राज है, जानते हो क्यों, क्योंकि वहाँ कोई कानून नही तोड़ता और यदि कानून तोड़ता भी है तो किसी कीमत पर बच नही सकता।और हमारे यहा हर पीड़ित हो या गुनाहगार हो पैरबी – जुगाड़ में लग जाता है । आए हम सभी ऊपर लिखे बातें को पढ़ कर अपनी सोच बदले और बेहतर पुलिस – पुलिसिंग का सहयोगी बने ।