वन्दना झा
मधुबनी:- महिलाओं और शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए समेकित बाल विकास परियोजना (आईसीडीएस) द्वारा विशेष ध्यान रखा जाता है| आंगनवाड़ी केंद्रों पर लोगों को बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी उपायों की जानकारी देने के साथ ही महिलाओं और शिशुओं को बहुत सारी सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं| शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य की जानकारी देने के लिए सभी प्रखंडों के सीडीपीओ के द्वारा अपने कार्यालय में प्रखंड की सभी महिला पर्यवेक्षक, यूनिसेफ और केयर के प्रखंडस्तरीय प्रतिनिधियों को प्रशिक्षण दिया गया| प्रशिक्षण जिले के सभी 21 प्रखंड में आयोजित किया गया| जहां उन्हें शिशुओं को कुपोषण और मृत्यु से बचाने, बीमार नवजात शिशुओं की पहचान कर उसे उचित स्वास्थ्य सुविधा सम्बंधित परामर्श देने व कंगारू मदर केयर के उपयोग और इससे होने वाले फायदों की जानकारी दी गई।
कुपोषण व मृत्यु से बचाव पर हुई चर्चा :
अधिकारियों द्वारा प्रशिक्षण में शिशुओं में कुपोषण की संख्या दूर करने और इसके कारण होने वाली बीमारियों व मृत्यु से उनका बचाव करने के लिए जरूरी उपायों पर चर्चा की गई| सीडीपीओ झंझारपुर रेखा कुमारी ने कहा कि किसी भी शिशु का गर्भावस्था के साढ़े आठ माह के पूर्व जन्म होना, जन्म के समय उनका वजन 2 किलोग्राम से कम होना, स्तनपान करने में असमर्थ होना इत्यादि कुपोषित होने के लक्षणों में से है।
इसे दूर करने के लिए गर्भावस्था से ही महिलाओं को सतर्क रहना चाहिए| आंगनवाड़ी सेविकाओं द्वारा गर्भवती महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान जरूरी खान-पान व आवश्यक जांच की जानकारी देते रहना चाहिए| परिवार के सतर्क रहने से शिशुओं के कुपोषित होने की संभावना खत्म हो जाती है| इसके अलावा माताओं को स्तनपान कराने और छः माह बाद शिशुओं को जरूरी ऊपरी आहार देने की जानकारी भी दी जानी चाहिए जिससे बच्चे का स्वास्थ्य बेहतर हो सके।
बीमारियों का समय रहते पहचान जरूरी :
पंडौल सीडीपीओ, रूमा झा ने बताया कि शिशुओं की के बीमारियों का समय रहते पहचान होने पर ही उसका बेहतर इलाज किया जा सकता है अन्यथा वह किसी गंभीर बीमारी का कारण भी हो सकता है.| नवजात शिशुओं में दिखाई देने वाले कुछ बीमारी के लक्षणों में गर्भनाल के पास लाली या सूजन, गर्भनाल में से मवाद (पस) या खून का निकलना व दुर्गंध आना उनके गंभीर बीमारी होने के लक्षण हो सकते हैं.| यदि ऐसे लक्षण नहीं भी हो तो भी शिशु को गंभीर बीमारी हो सकती है.| शुरुआत में ही खतरे के लक्षणों को पहचानने व तत्काल देखभाल करने और जरूरी इलाज उपलब्ध कराने से उन्हें संक्रमण या गंभीर बीमारियों से बचाया जा सकता है.महिला पर्यवेक्षकों को सभी आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को लोगों को इन बीमारियों सम्बन्धी परामर्श देने और आंगनवाड़ी केंद्र में आयोजित गतिविधियों में शिशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल करने के लिए हेतु निर्देशित किया गया.
स्तनपान कराने में सहायक होते हैं कंगारू मदर केयर :
पोषण अभियान की जिला समन्वयक स्मित प्रतीक सिन्हा ने बताया कि शिशुओं के बेहतर स्वास्थ्य के लिए उनका स्तनपान करना बहुत ही जरूरी है.| ऐसे बच्चे जिनका जन्म 8 माह से पूर्व हुआ हो, वजन 2 किलोग्राम से कम हो या स्तनपान करने में कमजोर हो उन्हें कंगारू मदर केयर की सुविधा देनी चाहिए.| इस दौरान शिशु को बिना कपड़े पहनाए माता के शरीर से लगाकर रखना चाहिए.इस दौरान बच्चे को टोपी व मौजे पहनाकर रखना ने चाहिए.उसे माँ के शरीर में सुरक्षित ढंग से बांधकर या टांगकर रखना चाहिए. इससे शिशु को अतिरिक्त गर्माहट मिलने के साथ स्तनपान कराने में आसानी होती है.पर्याप्त स्तनपान कराने से शिशुओं में कुपोषण की सम्भावना को दूर किया जा सकता है.