रमेश शंकर झा
समस्तीपुर:- जनमानस आदिकाल से ही ना केवल मनुष्य बल्कि अस्तित्व की प्रत्येक चीजें जिनमें प्रबल रूप से प्राण स्पंदित होती है या नहीं भी तो भी पारस्परिक तौर पर धरा पर जीवन सिंचित करती आ रही है। जैसे-जैसे मानवीय सभ्यता का कालानुक्रम विकास हुआ उसके तर्क करने बुद्धि आदि पहलुओं में आश्चर्यजनक विकास हुई और इसी बौद्धिक क्रांति ने दुनिया में वैज्ञानिक क्रांति को जन्म दिया और पूरी मानव जाति को नई-नई अविष्कारों से अचंभित किया। इन चमत्कृत कर देने वाले आविष्कारों की दौड़ में एक चीज जो धूमिल होती गई वो है मनुष्य की चेतना और इसी चेतनहीनता ने हर चीज जो आशीर्वाद साबित हो सकती थी उसे अभिशाप में तब्दील कर दिया। चेतना से हमारा तात्पर्य है कि हम स्वयं को समष्टि के एक छोटे से स्वरूप के रूप में महसूस कर पा रहे हैं या नहीं अगर ऐसा महसूस नहीं कर पा रहे हैं तो हम अपने आसपास की हर एक चीजों से यहां तक कि हम स्वंय से भी तारतम्य महसूस नहीं कर सकते और ऐसी स्थिति में स्वयं की महत्वाकांक्षा की आग में उन्मादी होकर आसपास की हर संसाधनों का विवेकहीन दोहन शुरू कर देते हैं। चाहे बात जल थल या नभ की हो हमारी वैज्ञानिक क्रांति ने अपनी नवीन-नवीन आविष्कारों से बहुत सारे रहस्योद्घाटन किए हैं जो पूरी मानव जाति के लिए वरदान साबित हुई है। तथापि चेतनहीनता के फलस्वरूप मनुष्य ने पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बिगाड़ कर रख दिया। फलस्वरूप समय-समय पर सूखा, बाढ़, विषाणु जनित महामारी और न जाने कैंसर सरीखे भयावह रोगों कि विभिषीका संपूर्ण मानव जाति को अपनी आगोश में लेती रहती है। ग्लोबल वार्मिंग और मानसून को प्रभावित करने वाले कारक अल-निनो, लानिना जैसी घटनाओं से हम सभी लोग अवगत हैं। बहरहाल चाहे हम पानी की गुणवत्ता की बात करें, वायु की गुणवत्ता की बात करें या फिर भूमि की उर्वरा शक्ति की बात करें तो इनमें काफी चिंताजनक ह्रास हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट बताते हैं कि 80 फ़ीसदी रोग प्रदुषित जल के कारण से हो रहे हैं। फिर भी महत्तवाकांक्षी होकर हम नदियों, जलाशयों को प्रदूषित करने से बाज नहीं आ रहे हैं। आज इसी चेतन हीनता का परिणाम है कि युवा वर्ग से लेकर दुनिया के वयस्क आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा व्यसन जनित रोगों का शिकार हो चुके हैं। चाहे बात तंबाकू, बीड़ी, सिगरेट या अन्य तरह के धूम्रपान की हो आज हमारे पास शोधपरक तथ्य मौजूद हैं कि इससे हाइपरटेंशन आदि बीमारियां होती हैं और हृदय गति को भी प्रभावित करते हैं। आज दुनिया की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा अवसाद और भी अन्य तरह के मनोवैज्ञानिक रोगों में अल्कोहल और संवेदन मंद पदार्थ (नारकोटिक ड्रग्स) जैसे हरोइन,कोकीन व मार्फिन आदि जैसे साइकॉट्रॉपिक ड्रग्स का सेवन करते हैं और यह एक तथ्य है कि शराब हमारी प्रतिक्रिया समय को भी बढ़ा देती हैं। प्रतिक्रिया समय से हमारा तात्पर्य है कि आपातकालीन समय में प्रतिक्रिया लेने में हम कितना समय लगाते हैं। सामान्य मनुष्य में यह प्रतिक्रिया समय 1 सेकेंड के दो तिहाई भाग अर्थात् 0.66 सेकेंड होती हैं। लेकिन नशे के आदि व्यक्ति में आपातकालीन प्रतिक्रिया समय बहुत अधिक होती है। फलस्वरूप हम आए दिन भीषण सड़क दुर्घटनायें और इससे होने वाली व्यापक जान-माल की क्षति जैसी खबरौ से रूबरू होते रहते हैं। आज विज्ञान ने हमें जितने सुख-सुविधाएं दिए हैं अगर हम प्रकृति के हित का ख्याल रखकर इन सबों का विवेकपूर्ण उपयोग करेंगे! तो वह जो बाढ़ सूखा और अनगिनत तरह की बीमारियां हमें ग्रसित करती हैं उससे हम बच सकते हैं।
योग्य के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने मानवीय मस्तिष्क के सर्वांगीण विकास और चेतनात्मक जागरण के लिए कई सारे रास्ते सुझाए हैं। मानवीय मस्तिष्क की यौगिक व्याख्या करते हुए उन्होंने मस्तिष्क के चार प्रकार बताएं हैं। जो इस प्रकार है:- मन, बुद्धि, चित और अहंकार। अगर हम इन चारों पहलुओं पर समग्र ध्यान देकर इनका उचित रूप से क्रियान्वयन करेंगे ।तो योग और अध्यात्म से हमारे भीतर एक विशेष स्तर की चेतना जागृत हो सकती है। और यह परिष्कृत प्रज्ञावान जनमानस प्रत्येक क्रियाकलाप को एक विशेष जागरूकता और चेतनता के साथ संपन्न करेगी। जिससे कि प्रकृति के विनाशलीला को रोककर धरा पर सुख शांति कायम की जा सकती है।