रमेश शंकर झा
पटना:- गृह मंत्री, भारत सरकार, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल एवं ओडिशा के माननीय मुख्यमंत्री, राज्यों के मंत्रिगण, राज्यों के मुख्य सचिव तथा केन्द्र एवं राज्यों के अधिकारीगण।
पूर्वी क्षेत्र के राज्यों का गौरवशाली इतिहास रहा है। हमारी संस्कृति और विरासत एक जैसी हैं। विभिन्न ऐतिहासिक, राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक कारणों से हमारी वर्तमान परिस्थिति भी एक सी है। हमारी कुछ समस्याएॅं भी समान है और हम सबको साथ मिलकर उनका हल निकालना है। पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की बैठक हमें यह अवसर प्रदान करती है कि हम अपनी समस्याओं को एक मंच पर विचार-विमर्श करें और उनका निराकरण ढूंढ सकें। भारत के संघीय ढाँचे में सभी राज्यों की सक्रिय पहल एवं सहभागिता से क्षेत्रीय समस्याओं का निराकरण करने के लिए क्षेत्रीय परिषद की महत्वपूर्ण भूमिका है। पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की पिछली बैठक दिनांक-01.10.2018 को कोलकाता में आयोजित हुई थी। उस बैठक में लिये गये निर्णयों की प्रगति की समीक्षा आज की बैठक में होगी एवं सदस्यों द्वारा प्रस्तावित नई अनुशंसाओं पर सकारात्मक चर्चा की जाएगी। हमारा विष्वास है कि आज की बैठक से पूर्वी क्षेत्र के राज्यों का बेहतर विकास होगा एवं केन्द्र तथा राज्यों के बीच बहुत से विषयों पर सर्वानुमति बनेगी।
पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की भूमिका- अन्य विषयों पर अपनी बात रखने से पहले मैं कहना चाहॅूंगा कि पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की बैठक लगभग डेढ़ वर्ष के अंतराल पर आयोजित हो रही है और पिछली बैठक में उठाये गये कई मुद्दों पर अभी भी कार्रवाई लंबित है। दिनांक-23.10.2019 को पटना में पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की स्थायी समिति की आयोजित बैठक में विभिन्न बिन्दुओं पर विमर्श हुआ था। इस परिषद् में अंतर्राज्यीय मुद्दों के समाधान हेतु एक प्रणाली विकसित होनी चाहिए ताकि उच्चतम स्तर पर द्विपक्षीय मुद्दों का हल निकाला जा सके और इसका अनुश्रवण नियमित रूप से हो सके।
स्पेशल प्लान- बिहार में आधारभूत संरचना की कमी को देखते हुए भारत सरकार द्वारा 12वीं पंचवर्षीय योजना में विशेष योजना (बी०आर०जी०एफ०) के तहत 12000 करोड़ रूपये की स्वीकृति दी गई थी। इसमे नयी परियोजनाओं के लिये रू॰ 10500 करोड़ तथा पुरानी चालू योजनाओं को पूरा करने के लिए रू॰ 1500 करोड़ कर्णाकित किये गये थे। इसमें 9987.39 करोड़ की नयी परियोजनाओं की स्वीकृति नीति आयोग द्वारा दी गयी जिसमें ऊर्जा प्रक्षेत्र की आठ परियोजनाओं (रू0 8308.67 करोड) तथा पथ प्रक्षेत्र की दो परियोजना (रू0 1680.72 करोड़) थी। अभी नीति आयोग के पास रू॰ 510.91 करोड के विरूद्ध 500 करोड़ रूपये की पथ प्रक्षेत्र की योजना स्वीकृति हेतु भेजी गई है जिसकी शीघ्र स्वीकृति की अपेक्षा है। साथ ही अभी भारत सरकार से 911.82 करोड़ की विमुक्ति होना शेष है। इस बैठक के माध्यम से मैं अनुरोध करता हूँ कि पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि के माध्यम से विशेष योजना के तहत बिहार राज्य की अवशेष 911.82 करोड़ की राशि अतिशीघ्र विमुक्त की जाए।
जल संसाधन- पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् की दिनांक 27.06.2016 को राँची में सम्पन्न 22वीं बैठक में पश्चिम बंगाल से संबंधित महानन्दा सिंचाई परियोजना, झारखण्ड राज्य से संबंधित तिलैया ढ़ाढ़र योजना, कोयल जलाशय योजना, बटाने जलाशय योजना एवं धनारजै जलाशय योजना के मुद्दे को मेरे द्वारा उठाया गया था। प्रधानमंत्री कार्यालय के पहल पर वर्षों से अवरुद्ध उत्तर कोयल जलाशय योजना पर कार्य प्रारंभ हुआ है, परंतु अन्य योजनाओं में निहित मुद्दों का निराकरण अबतक नहीं हो पाया है:-
महानन्दा सिंचाई परियोजना- महानन्दा सिंचाई परियोजना हेतु ऑफ टेक बिन्दु के निकट पश्चिम बंगाल राज्य द्वारा 8 किलोमीटर की लंबाई के विरूद्ध अब तक मात्र 0.63 किलोमीटर की लंबाई में ही नहर का निर्माण किया गया है एवं इस कार्य हेतु भू-अर्जन भी अभी बाकी है, जबकि बिहार-पश्चिम बंगाल के बीच वर्ष 1978 में हुए एकरारनामे के अनुसार महानन्दा नदी पर पश्चिम बंगाल में अवस्थित फुलवारी बराज से बिहार राज्य के अन्तर्गत किशनगंज जिले के 67,000 एकड़ भूमि में सिंचाई सुविधा मिलनी है। एकरारनामे में यह भी प्रावधान है कि फुलवारी बराज के लागत-राशि का बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों द्वारा अंशदान का वहन इन राज्यों में सिंचित-क्षेत्र के अनुपात में किया जायेगा। इस योजना पर हुए व्यय के अनुसार बिहार राज्य की देनदारी 25.72 करोड़ रुपये की बनती है। चूंकि अभी तक इस योजना के माध्यम से कोई भी लाभ नही मिला इसलिए इस संबंध में कोई भी भुगतान नही किया गया है। अतएव हमारा पश्चिम बंगाल सरकार से अनुरोध है कि इस योजना का लंबित कार्य पूर्ण कराकर बिहार को सिंचाई हेतु जल की उपलब्धता सुनिश्चित कराये।
तिलैया ढ़ाढ़र परियोजना- बिहार-पश्चिम बंगाल एकरानामा 1978 में निहित प्रावधान के अनुसार बराकर बेसिन में अवस्थित तिलैया डैम से 2.00 लाख एकड़ फीट जल बिहार राज्य को प्राप्त होना है। वर्ष 2000 में पश्चिम बंगाल सरकार से सहमति प्राप्त होने के पश्चात् अब यह बिहार झारखण्ड राज्य की संयुक्त परियोजना है। इसके लिए गया जिले के फतेहपुर प्रखण्ड में सोहजना ग्राम के निकट ढ़ाढर नदी पर 37,400 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई सुविधा विकसित करने हेतु बराज का निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है, परंतु झारखण्ड राज्य द्वारा वाँछित जल उपलब्ध नहीं कराने के चलते अभी मात्र 6,900 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई हेतु नहर प्रणाली विकसित की जा सकी है। झारखण्ड सरकार से अनुरोध है कि उक्त योजना अंतर्गत प्रावधानित जल की उपलब्धता सुनिश्चित कराये।
बटाने जलाशय योजना- यह योजना बिहार एवं झारखण्ड राज्य की संयुक्त परियोजना है, जिसके अंतर्गत बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले के 10720 हेक्टेयर एवं झारखण्ड राज्य के पलामू जिले के 1406 हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा विकसित होगी। पलामू जिले में बाँध तथा इसके 3 कि0मी0 नीचे बराज का निर्माण कार्य पूर्ण कर लिया गया है, परंतु ग्रामीणों के द्वारा उनके पुनर्वास की समस्या का निराकरण नहीं होने के चलते डैम के स्पीलवे गेट को वेल्ंिडग कर बंद कर दिया गया है तथा डैम के गेट का अधिष्ठापन नहीं होने दिया है, जिससे बिहार राज्य के औरंगाबाद जिले में पटवन नहीं हो पाता है। झारखण्ड सरकार से इस समस्या के त्वरित समाधान हेतु अनुरोध करता हूँ ।
धनारजै जलाशय योजना- झारखण्ड सरकार द्वारा धनारजै जलाशय योजना के स्थान पर बराज निर्माण करने हेतु योजना प्रतिवेदन तैयार करने की सहमति दी गई है, परंतु इस संदर्भ में झारखण्ड सरकार के द्वारा सर्वे एवं अन्य कार्य हेतु अपेक्षित सहयोग नहीं दिया जा रहा है। इस कार्य हेतु प्रस्तावित संयुक्त समिति का गठन भी झारखण्ड सरकार से मनोनयन प्राप्त नहीं होने के कारण, नहीं हो पा रहा है।
बाढ़ के शमन हेतु प्रभावकारी राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति का सूत्रण – गाद की समस्या के चलते गंगा की अविरलता क्षीण हो रही है, जबकि गंगा की निर्मलता उसकी अविरलता के बिना संभव नहीं है। गाद की समस्या की विकरालता को समझने के उद्देश्य से दिनांक 25-26 फरवरी 2017 को पटना में ‘‘अविरल गंगा’’ विषय पर एवं 18-19 मई 2017 को नई दिल्ली में ‘‘गंगा की अविरलता में बाधक गाद: समस्या एवं समाधान’’ विषय पर सम्मेलन का आयोजन, बिहार सरकार द्वारा किया गया जिसमें जाने-माने जल विशेषज्ञों द्वारा भाग लिया गया। इन सम्मेलनों में क्रमशः पटना घोषणा पत्र एवं दिल्ली घोषणा पत्र जारी किये गये। इन घोषणा पत्र में फरक्का बराज के कारण गाद की समस्या के चलते उसके कुप्रभाव के अध्ययन हेतु एक समयबद्ध कार्यक्रम निर्धारित करने, बिहार राज्य के अपस्ट्रीम में स्थित सभी बांधों एवं बराजों से समुचित मात्रा में पर्यावरणीय प्रवाह (ई-फ्लो) गंगा नदी में छोड़े जाने, राष्ट्रीय जलमार्ग 1 में ड्रेजिंग के चलते क्षरण में वृद्धि के प्रभाव के वैज्ञानिक अध्ययन करने तक ड्रेजिंग कार्य को स्थगित रखने, भारत द्वारा बांग्लादेश को फरक्का बराज पर दिए जाने वाले 1500 क्यूमेक जलश्राव में गंगा घाटी के सभी राज्यों की हिस्सेदारी तय करने, गाद को हटाने के स्थान पर गाद को प्रवाह मार्ग प्रदान करने हेतु तंत्र विकसित करने, फरक्का बराज के अपस्ट्रीम में गाद प्रबंधन तथा डाऊनस्ट्रीम में क्षरण (म्तवेपवद) की समस्या के निदान के रूप में फरक्का बराज में संरचनात्मक बदलाव या इसके हटाने के विकल्प पर विचार करने एवं हिमालीय तथा मृदाजनित नदियों पर एक समग्र राष्ट्रीय गाद प्रबंधन नीति के सूत्रण की आवश्यकता बताई गई। पटना घोषणा पत्र एवं दिल्ली घोषणा पत्र को संलग्न करते हुए मैंने माननीय प्रधान मंत्री को वर्ष 2017 में पत्र लिखकर इन सभी बिन्दुओं पर कार्रवाई करने हेतु अनुरोध किया। दिसम्बर, 2017 में भारत सरकार का सूत्रण किया गया है, जो मुख्य रूप से गंगा नदी के जल मार्ग में परिवहन की आवश्यकता को देखते हुए गाद हटाने पर केन्द्रित है। यह नीति राज्य की विशिष्ट आवश्यकता के अनुरूप नहीं है। गंगा नदी की अविरलता को बरकरार रखने के उद्देश्य से राष्ट्रीय स्तर पर एक व्यापक गाद प्रबंधन नीति के सूत्रण की आवश्यकता है, जो पर्यावरणीय एवं पारिस्थितिकी तंत्र के अनुकूल हो।
कृषि- डाॅ॰ एम॰एस॰ स्वामीनाथन की अध्यक्षता में गठित राष्ट्रीय किसान आयोग ने वर्ष 2004 में ही पूर्वी राज्यों में कृषि की त्वरित विकास की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से रेखांकित किया था। आयोग की यह आशंका थी कि पूर्वी राज्यों में कृषि के विकास के बिना देश की खाद्यान्न सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो सकता है।
पूर्वी भारत खासकर बिहार शुरू से ही सभ्यता का केन्द्र रहा है और यह क्षेत्र कृषि के क्षेत्र में अग्रणी था। इस क्षेत्र में कृषि विकास हेतु असीमित संभावनाएँ होते हुए भी हरित क्रांति के दौर में यह क्षेत्र पिछड़ गया। वर्ष 2017-18 में चावल की उत्पादकता, पंजाब में 4.3 टन प्रति हेक्टर था तो इसकी तुलना में पश्चिम बंगाल में 2.9, उत्तर प्रदेश में 2.2, बिहार में 2.4, उड़ीसा में 1.7, असम में 2.1 एवं छत्तीसगढ़ में 1.2 टन प्रति हेक्टेर था। इसी प्रकार गेहूँ की उत्पादकता पंजाब में 5 टन प्रति हेक्टेर की तुलना में बिहार में गेहूँ की उत्पादकता लगभग आधी (2.8 टन प्रति हेक्टेर) थी।
हरित क्रांति के पारम्परिक पश्चिमी राज्यों में चावल एवं गेहूँ का उत्पादकता का स्तर स्थिर हो चुका है। अतएव दूसरे हरित क्रांति के क्षेत्र के रूप में पूर्वी राज्यों की तरफ पूरा देश देख रहा है। पूर्वी राज्यों में कृषि विकास की संभावनाओं के बावजूद इस क्षेत्र की कतिपय समस्याएँ भी हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण यह क्षेत्र कई प्रकार की आपदाओं यथा बाढ़, सूखाड़ एवं अनियमित वर्षापात से प्रभावित हो रहा है। जिसका असर इस क्षेत्र के लघु एवं सीमान्त किसानों पर पड़ रहा है। ऐतिहासिक रूप से पूर्वी भारत कृषि के क्षेत्र में व्यापक निवेश से वंचित रहा है। उदाहरण के तौर पर बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम एवं छत्तीसगढ़ समेत पूर्वी राज्यों में खाद्यान्न भंडारण क्षमता मई 2019 में मात्र 90.47 लाख मेट्रिक टन थी जबकि इस समय अकेले पंजाब में खाद्यान्न भंडारण क्षमता 233.99 लाख मेट्रिक टन थी।
पूर्वी राज्यों में त्वरित कृषि विकास की आवश्यकता को पहचानते हुए भारत सरकार द्वारा वर्ष 2010 से राष्ट्रीय कृषि विकास योजना की एक उपयोजना शुरू की गयी है। यह योजना बिहार, झारखंड, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, असम, छत्तीसगढ़ एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में लागू किया जा रहा है। इस योजना का प्रमुख उद्देश्य धान आधारित फसल प्रणाली की उत्पादकता को बढ़ाना है। वर्ष 2019-20 में इस योजना के तहत बिहार को मात्र 52 करोड़ रुपये एवं सभी पूर्वी राज्यों को मिलाकर 414 करोड़ रुपये का उद्व्यय प्राप्त हुआ है जो इस क्षेत्र की आवश्यकताओं को देखते हुए अपर्याप्त है। खाद्यान्न फसलों के उत्पादन एवं उत्पादकता में बढ़ोत्तरी के लिए बीज, तकनीकी प्रत्यक्षण, यंत्रीकरण के साथ ही फसलोतर प्रबंधन के लिए भंडारण तथा प्रसंस्करण क्षमता विस्तार के लिए योजनान्तर्गत प्रति वर्ष 1000 करोड़ रुपये बिहार राज्य के लिए कर्णांकित किया जाए।
फसल अवशेष को जलाने की समस्या को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा फसल अवशेष के प्रबंधन के कई कदम उठाये गये हैं। किसानों के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। राज्य सरकार अपने सीमित संसाधन से किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपयोगी कृषि यंत्र पर 80 प्रतिशत तक अनुदान दे रही है। भारत सरकार द्वारा फसल अवशेष प्रबंधन के लिए पंजाब एवं हरियाणा के विशेष पैकेज दिया गया है। बिहार राज्य को भी इस पैकेज में शामिल किया जाए तथा फसल अवशेष प्रबंधन के लिए बिहार को 200 करोड़ रुपये उपलब्ध कराया जाए।
बिहार में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए वर्ष 2008 से लगातार कृषि रोड मैप लागू किया जा रहा है। पहले दो कृषि रोड मैप की सफलता के बाद वर्ष 2017-22 के लिए तीसरे कृषि रोड मैप का कार्यान्वयन किया जा रहा है। तीसरे कृषि रोड मैप पर पाँच वर्षों में 1.54 लाख करोड़ रुपये का निवेश का लक्ष्य रखा गया है। कृषि रोड मैप का अनुभव बताता है कि कृषि क्षेत्र के समग्र विकास के लिए सिंचाई, ऊर्जा, सड़क, खाद्य प्रसंस्करण, भंडारण, भूमि सुधार, सहकारिता, वृक्ष आच्छादन क्षेत्र में निवेश की आवश्यकता है, तभी कृषि से संबंधित सभी प्रक्षेत्रों यथा फसल, बागबानी, दूध उत्पादन, अंडा उत्पादन, मछली पालन के कार्यक्रम को बल मिलेगा। इसलिए केन्द्र सरकार के द्वारा कृषि से संबंधित इन सभी प्रक्षेत्रों में पूर्वी क्षेत्र के राज्यों में पर्याप्त निवेश करना चाहिए ताकि यह क्षेत्र जो पिछले हरित क्रांति से छूट गया है अब नई हरित क्रांति का केन्द्र बन सके।
झारखण्ड से पेंशन आदेयता- बिहार राज्य पुनर्गठन अधिनियम-2000 के अन्तर्गत बिहार और झारखण्ड दोनों राज्यों के बीच पेंशन आदेयताओं के वहन किये जाने के निमित्त एक फार्मूला दिया गया था, उसका झारखण्ड सरकार द्वारा अनुपालन नहीं किये जाने की स्थिति में भारत सरकार के गृह मंत्रालय को अधिनियम के प्रावधानों के तहत् हस्तक्षेप करना पड़ा ।
गृह मंत्रालय को दिनांक 25.09.2012 द्वारा बिहार पुनर्गठन अधिनियम, 2000 के 8वीं सूची के साथ पठित धारा-53 के अनुसार झारखण्ड सरकार द्वारा दिनांक 15.11.2000 के पहले सेवानिवृत हुए कर्मचारियों के पेंशन एवं अन्य सेवानिवृति लाभ के रुप में कर्मचारी अनुपात में दिनांक 31.03.2011 तक का कुल 2584.09 करोड़ रुपये की प्रतिपूर्ति झारखण्ड सरकार के द्वारा बिहार सरकार को किये जाने का आदेश पारित किया गया है ।
झारखण्ड सरकार का इस विषय पर यह मत है कि पेंशन दायित्वों का बंटवारा जनसंख्या अनुपात में होना चाहिए तथा इस निमित माननीय उच्चतम न्यायालय में मूल वाद संख्या-1/2012 दायर किया गया । दिनांक 18.06.2018 को केन्द्रीय गृह सचिव के अध्यक्षता में मुख्य सचिव, बिहार एवं झारखण्ड के बीच आयोजित बैठक में इस बात पर सहमति हुई कि जब तक मूल वाद में अंतिम न्याय निर्णय नहीं आ जाता है तबतक अंतरिम व्यवस्था के अन्तर्गत जनसंख्या अनुपात में झारखण्ड सरकार द्वारा प्रतिपूर्ति कर भुगतान किया जायेगा ।झारखण्ड सरकार द्वारा अंतरिम व्यवस्था के तहत् जनंसख्या अनुपात में प्रतिपूर्ति करने के बदले दो नये बिन्दु उठाते हुए प्रतिपूत्र्ति की राशि स्थगित कर दी है । झारखण्ड सरकार द्वारा अबकर्मचारी अनुपात का नये सिरे से निर्धारण करनेतथा पेंशन भुगतान संबंधित महालेखाकार कार्यालय द्वारा प्रस्तुत आंकड़े गलत बताये जाने का मुद्दा उठाया है ।
महालेखाकार के आंकड़े को गलत बताया जाना तथा कर्मचारी अनुपात जो पूर्व से निर्धारित है तथा भारत सरकार की सहमति प्राप्त है, के संबंध में झारखण्ड सरकार द्वारा पुनः आपत्ति किये जाने का औचित्य नहीं है ।
अतः उत्तरवत्र्ती बिहार राज्य का अनुरोध होगा कि माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय होने तक केन्द्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में जो सहमति बनी है,के आधार परअंतरिम व्यवस्था के अन्तर्गत जनसंख्या अनुपात में बिहार राज्य को वर्ष 2017-18 तक प्रतिपूत्र्ति संबंधित भुगतेय राशि लगभग 310.52 करोड़रुपये का भुगतानझारखण्ड सरकार द्वारा की जाय ।
आन्तरिक सुरक्षा- आप अवगत होंगे कि बिहार सांप्रदायिक दृष्टिकोण से संवेदनशील राज्य है। विभिन्न अवसरों पर सांप्रदायिक सौहार्द कायम रखने तथा विधि-व्यवस्था संधारण के उददेश्य से केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की रैपिड एक्शन फोर्स की माँग गृह मंत्रालय, भारत सरकार से की जाती रही है। अब तक रैपिड एक्षन फोर्स की टुकड़ियां सामान्यतः जमशेदपुर से बिहार को भेजी जाती हैं जिसमें यात्रा का समय लगभग 12 से 16 घंटे लगने के कारण स्थिति के नियंत्रण में कठिनाई होती है। इस संबंध में आंतरिक सुरक्षा की आवश्यकताओं को देखते हुए राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को मुख्यालय की बिहार में स्थापना के लिए निःशुल्क 50 एकड़ भूमि उपलब्ध करायी जा रही है।
राज्य सरकार के उक्त निर्णय के क्रम में वैशाली जिले में स्थित 28.99 एकड़ भूमि को त्ंचपक ।बजपवद थ्वतबम (त्।थ्) के वाहिनी मुख्यालय की स्थापना हेतु केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल को भौतिक रूप से हस्तगत करा दिया गया है। शेष लगभग 21 एकड़ भूमि अधिग्रहण की कार्रवाई 2-3 माह में पूरी की जा रही है।
गृह मंत्रालय, भारत सरकार से अनुरोध है कि भौतिक रूप से उपलब्ध करा दी गई लगभग 29 एकड़ भूमि पर मुख्यालय का निर्माण कार्य शीघ्र शुरू हो।
उग्रवाद नियंत्रण हेतु केन्द्रांश- केन्द्र सरकार ने उग्रवाद प्रभावित राज्यों में सुरक्षा बलों के क्षमता संवर्द्धन और क्षेत्रीय विषमता को दूर करने के लिए पुलिस बलों के लिए आधारभूत संरचना के विकास की विशेष संरचना योजना प्रारम्भ की थी। इसके काफी अच्छे परिणाम देखने में आए हैं। ऐसा ज्ञात हुआ है कि इस योजना को केन्द्र सरकार द्वारा 2019-20 तक ही चलाया जाएगा। जबकि हम तो इस आशा में थे कि केन्द्र सरकार ऐसी योजनाओं को सुदृढ़ करते हुए संसाधनों में बढ़ोतरी करेगी। इस योजना के बंद हो जाने से प्रभावित जिलों में उग्रवाद नियंत्रण पर विशेष रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। अतएव हमारा कहना है कि केन्द्र सरकार इन योजनाओं को पूर्व की भाँति जारी रखे।
इस अवसर पर मैं केंद्र सरकार द्वारा अभियान के लिए प्रतिनियुक्त केंद्रीय सुरक्षा बल पर होने वाले खर्च की प्रतिपूर्ति राज्य सरकार के कोष से किए जाने की नीति की तरफ भी ध्यान आकृष्ट कराना चाहूँगा। आंतरिक सुरक्षा के लिए वामपंथी उग्रवादियों के खिलाफ यह लड़ाई राज्य और केंद्र सरकार की संयुक्त लड़ाई है, परन्तु इन बलों की प्रतिनियुक्ति पर होने वाले खर्च को उठाने का पूरा जिम्मा राज्य सरकार को दिया जाता है। अतः अनुरोध होगा कि इन खर्चों का वहन केन्द्र और राज्य को संयुक्त रूप से करना चाहिए। यहाँ मैं यह स्पष्ट कर देना चाहूँगा कि बिहार सरकार केंद्रीय बलों से संबंधित गृह मंत्रालय को किए जाने वाले भुगतान के प्रति हमेशा सजग रही है और समय पर भुगतान किया जाता है।
बिहार में अवस्थित केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल बटालियन के बिहार राज्य में हीं तैनाती के संबंध में-
बिहार से केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की 10 कंपनी दूसरे राज्यों में भेजी गई थी, जिसमें से 2 कंपनी केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल की वापसी हुई है। शेष 8 कंपनियों की बिहार में वापसी हेतु कार्रवाई आवष्यक है।
इसके अतिरिक्त बिहार से 2 बटालियन केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल छत्तीसगढ़ भेजने का केन्द्र सरकार का आदेश हुआ था। इसे बिहार में ही बने रहने देने के लिए आग्रह किया गया था। इसके लिए मेेरे स्तर से पत्र भी माननीय गृह मंत्री को भेजा गया जिस पर माननीय गृह मंत्री के माध्यम से संसूचना भी प्राप्त हुई है। बिहार राज्य के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा अंतराल न बने इसके लिए इन बलोें का बिहार में ही रहना आवश्यक है। इन दोनों बटालियनों के अन्यत्र स्थानांतरण आदेश को रद्द किया जाए तथा बिहार में ही बने रहने का आदेश दिया जाए।
बिहार में पूर्ण मद्य निषेध- बिहार राज्य में 01 अप्रैल, 2016 से शराबबंदी लागू कर सामाजिक परिवर्तन की बुनियाद रखी गयी है। संपूर्ण बिहार में इसके प्रति जनसामान्य विशेषकर महिलाओं में काफी उत्साह है। हर स्तर पर मिले समर्थन एवं सहयोग से पूर्ण मद्य निषेध को लागू करने में राज्य सरकार को सफलता मिली है। इस अभियान की सफलता में सीमावर्ती राज्यों की भी भूमिका महत्वपूर्ण है। हमारे राज्य की सीमा झारखंड, उत्तर प्रदेश एवं पश्चिम बंगाल राज्य से लगती है। मैने पत्र के माध्यम से सीमावर्ती राज्यों के माननीय मुख्यमंत्रियों से सहयोग एवं समन्वय का अनुरोध किया था। बिहार में पूर्ण शराबबंदी के अभियान को और सुदृढ़ करने के लिए सीमावर्ती क्षेत्रों पर सख्त निगरानी की आवश्यकता है। इसके लिए प्रशासनिक स्तर से भी पहल की गई है। मैंने 27.06.2016 को राँची में आयोजित पूर्वी क्षेत्रीय परिषद की बैठक में झारखंड एवं पश्चिम बंगाल राज्य से अनुरोध किया था कि बिहार राज्य की सीमावर्ती क्षेत्रों में शराब की खपत पर नजर रखी जाए और शराब की आवक बिहार राज्य में न हो सके, इसके लिए प्रशासनिक तंत्र को कड़े निर्देश दिये जायें।
इस बात की प्रसन्नता है कि बिहार राज्य से झारखंड के सीमावर्ती जिलों गढवा, पलामू, चतरा, हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडिह,देवघर, दुमका, गोड्डा, साहेबगंज के वित्तीय वर्ष 2015-16 की तुलना में वित्तीय वर्ष 2016-17, 2017-18 एवं 2018-19 में शराब दुकानों की में कमी परिलक्षित हुआ है। लेकिन झारखंड राज्य से सटे बिहार के सीमावर्ती जिलों में अवैध शराब की आवाजाही में कमी नहीं हुई है। उदाहरणस्वरूप डोभी चेकपोस्ट, गया, रजौली चेकपोस्ट नवादा, बाॅसी चेकपोस्ट, बांका एवं चकाई तथा बटिया चेकपोस्ट/बैरियर, जमुई में बड़ी संख्या में अवैध शराब ले जाते हुए वाहनों को जब्त किया गया है तथा उनमें भारी मात्रा में अवैध शराब जब्त की गई है। पश्चिम बंगाल से दालकोला (पूर्णियाँ), फरीमगोला (किशनगंज), खगड़ा(किशनगंज), ब्लाॅकचैक (किशनगंज) आदि चेकपोस्टो पर भी बड़ी संख्या में अवैध शराब ले जाते हुए वाहनों को पकड़ा है और भारी मात्रा में शराब जब्त की गई है। अतः झारखंड एवं पश्चिम बंगाल सरकार से अपेक्षा है कि वे बिहार की सीमा में अपने राज्य से आने वाले अवैध शराब के तस्करों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करें।
यहाँ यह भी उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग, झारखंड के अधिसूचना सं०-1306, दिनांक 14.11.2002 के अनुसार यह नियम झारखंड में लागू है कि राज्य के सीमा के 3.2 कि०मी० के भीतर कोई भी सरकारी शराब की दुकान की अनुज्ञप्ति राज्य सरकार की अनुमति के बिना नहीं दी जाएगी। इस प्रावधान का शतप्रतिशत अनुपालन नहीं हो रहा है। हमारा पुनः अनुरोध झारखण्ड सरकार से होगा कि वे इसकी अनुमति न दें और बिहार राज्य एवं राज्य की जनता की शराबबंदी के अभियान में मदद करें। शराबबंदी के सामाजिक प्रभाव काफी दूरगामी हैं और इनका तात्कालिक असर भी अपराध नियंत्रण विशेष रूप से सामाजिक अपराध एवं सड़क दुर्घटनाओं में आई कमी के रूप में देखा जा सकता है।
विशेष राज्य का दर्जा- पिछले कुछ वर्षों में दोहरे अंक का विकास दर हासिल करने के बावजूद भी हम विकास के प्रमुख मापदंडों मसलन गरीबी रेखा, प्रति व्यक्ति आय, औद्योगीकरण और समाजिक एवं भौतिक आधारभूत संरचना में राष्ट्रीय औसत से नीचे हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि हमारी तरह कई अन्य राज्य भी पिछड़े हैं। ऐसे पिछड़े राज्यों को एक समय सीमा में पिछड़ेपन से उबारने और राष्ट्रीय औसत के समकक्ष लाने के लिए सकारात्मक नीतिगत पहल की जरूरत है। अतः पिछडे राज्यों को मुख्य धारा में लाने हेतु नई सोच के तहत आवश्यक नीतिगत ढांचा तैयार करने की तत्काल आवश्यकता है।
जिन राज्यों को विशेष श्रेणी के राज्य का दर्जा मिला है वे विकास के मामले में प्रगति किये हैं। अतः पिछड़ेपन से निकल कर विकास के राष्ट्रीय औसत स्तर को प्राप्त करने के लिए बिहार को और इस जैसे अन्य पिछड़े राज्यों को विशेष राज्य का दर्जा मिलना आवश्यक है। हमने केन्द्र सरकार के समक्ष अपनी मांग को पुरजोर दोहराया है। आज मैं माननीय गृह मंत्री के समक्ष पुनः अपनी माँग को रखता हूँ कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिया जाए ताकि हमें हमारा वाजिब हक मिल सके और बिहार भी आगे बढ़ कर देश की प्रगति में अपना योगदान दे सके।
मुझे विश्वास है कि आज की बैठक में इन सभी मुद्दों पर विचार होगा और उन्हें तार्किक परिणति तक पहुंचाया जाएगा। मुझे आशा है कि पूर्वी क्षेत्रीय परिषद् में की गई मंत्रणा सार्थक और उपयोगी होगी।