कुंदन कुमार राय
‘या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना
या ब्रह्माच्युतशंकरप्रभृतिभिदैवै सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥’
‘जो कुन्द पुष्प, चँद्र, तुषार और मुक्ताहार जैसी धवल है, जो शुभ्र वस्त्रों से आवृत्त है, जिसके हाथ वीणारूपी वरदंड से शोभित हैं, जो श्वेत पद्म के आसन पर विराजित है, जिसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश जैसे मुख्य देव वंदन करते हैं, ऐसी निःशेष जड़ता को दूर करने वाली भगवती सरस्वती! मेरा रक्षण करे। ये मंत्र परिभाषित करता है माँ सरस्वती के विराट रूप को।कहते हैं,अज्ञान रूपी अंधेरा कितना भी गहरा क्यों न हो ज्ञान का एक दिया उसे दूर कर देता है। मन चाहे कितना भी अस्थिर हो माँ सरस्वती की मूरत को देख कर स्थिरता धारण कर लेता है।
शायद यही कारण है कि बसंत पंचमी के आने से पहले ही असीम आनंद व उल्लास में खोने लगते है, विशेषतः विद्यार्थी,कला,शिक्षा इत्यादि के क्षेत्र से जुड़े लोग और माँ सरस्वती की पूजा-आराधना करते हैं। बसंत पंचमी को श्रीपंचमी भी कहते है,और जैसा नाम से परिलक्षित होता है इस दिन लोग पीले,बसंती,धानी वस्त्र धारण करना पसंद करते हैं व विद्या की देवी माँ सरस्वती की पूजा करते है।बहुत कम लोग जानते हैं कि वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन विष्णु और कामदेव की भी पूजा होती है।बसंत ऋतुओं का राजा कहलाता है और भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में स्पष्ट कहा है कि मैं ऋतुओं में मैं बसंत हूं। बसंत ॠतु में प्रकृति का सौन्दर्य सभी ऋतुओं से बढ़कर होता है।चारों तरफ पेड़ों पर अमलताश, गुलमोहर, टेंशू इत्यादि के फूल खिलने लगते हैं,खेतों में सरसों,जौ,गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं हैं,आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता,कोयल अपने मधुर कंठ से प्रकृति का गुणगान करने लगती है और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ-भंवरे मँडराने लगते हैं। ठंड के बाद एक सुहाना मौसम मन को उन्माद में भर देता है। उपनिषदों अनुसार ब्रह्मा ने जीव,जंतु तथा मनुष्य योनि की रचना तो की लेकिन वाणी की रचना नहीं की। बिना वाणी हर रचना निरस लग रही थी।
तब शिव की आज्ञा से ब्रह्मा एवं विष्णु ने भगवती दुर्गा माँ का आव्हान किया और माँ जगदंबा दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।जिसे सुन आदिशक्ति दुर्गा माँ के शरीर से स्वेत रंग का एक भारी तेज उत्पन्न होकर एक दिव्य नारी के रूप में परिवर्तित हो गया। इसलिए बसन्त पंचमी को उनके प्रकटोत्सव के रूप में मनाते हैं।देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी “सरस्वती” नाम दिया।जिनके चार हाथों में वीणा,पुस्तक, माला तथा वर मुद्रा थे। माँ सरस्वती के मुस्कान से उल्लास, दो हाथों में वीणा-भाव संचार एवं कलात्मकता, पुस्तक से ज्ञान और माला से ईशनिष्ठा-सात्त्विकता का बोध होता है।इनका एक वाहन मयूर-सौन्दर्य एवं मधुर स्वर का प्रतीक है व दुसरा वाहन हंस,जो भारतीय साहित्य में विवेकी पक्षी माना जाता है।ऐसा विश्वास है कि यह नीर-क्षीर विवेक(पानी और दूध को अलग करने वाला विवेक) से युक्त है।
माँ सरस्वती को वागीश्वरी,भगवती, शारदा,वीणावादनी,भारती, ब्राह्मी, वाणी, गीर्देवी,वाग्देवी,भाषा,शारदा, त्रयीमूर्ति,गिरा,वीणापाणि,शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा,श्वेतपद्मासना पद्मासना,हंसवाहिनी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है।
संगीत की उत्पत्ति करने वाली विद्या और बुद्धि प्रदाता माँ सरस्वती भगवान ब्रह्माजी वामअंग में शोभा पाती हैं।
सरस्वती पुराण और मत्स्य पुराण में सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा व माँ सरस्वती के विवाह का जिक्र हुआ है।जिसके फलस्वरूप इस धरती के प्रथम मानव ‘मनु’ का जन्म हुआ।शिक्षा,कला इत्यादि के क्षेत्र से जुड़े लोग सरस्वती मां की पूजा-आराधना करते हैं और मानते है की दिन में एक बार सरस्वती माँ मनुष्य की जिव्हा पर जरूर आती है और उसकी वो बात जरुर सच हो जाती है।माँ सरस्वती के पास आठ प्रकार की शक्तियाँ हैं ज्ञान, विज्ञान, विद्या, कला, बुद्धि, मेधा, धारणा और तर्कशक्ति।जो वो अपने भक्तों पर न्योछावर करतीं हैं।
माँ सरस्वती की महिमा का वर्णन वेदों – उपनिषदों, रामायण, महाभारत,देवी भागवत पुराण,कालिका पुराण,वृहत्त नंदीकेश्वर पुराण तथा शिव पुराण इत्यादि में है।
माँ सरस्वती को सफेद रंग अत्यंत प्रिय है इसलिए माता की आराधना करते समय श्वेत पुष्प, सफेद चन्दन, श्वेत वस्त्र आदि श्वेत पदार्थ अर्पित किया जाता है।
‘‘ऊँ ऐं महा सरस्वत्यै नमः’’ महामंत्र का जाप माँ सरस्वती को अत्यंत प्रिय है।एक कथा के अनुसार एक बार माँ सरस्वती,माँ लक्ष्मी व माँ गंगा मे किसी बात पर झगड़ा हुआ। तीनो ने जब एक दुसरे को श्राप दे दिया,तब उनको अपनी भूल का आभास हुआ।तब भगवान विष्णु ने कहा की लक्ष्मी तुलसी वृक्ष बनकर मेरे पूजा में विशेष स्थान रखेगी और मेरे ही रूप शालिग्राम से तुलसी विवाह रचाएगी| सरस्वती मुख्य रूप से धरती पर नदी रूप में बहेगी और अंश रूप में मेरे पास रहेगी और गंगा स्वर्ग,भूलोक, पाताल में त्रिपथगा के रूप में बहेगी और मोक्ष दायिनी नदी के रूप में मृत्यु लोक में मोक्ष प्रदान करेगी।
माँ सरस्वती के रूप की पूजा पूर्वी भारत,पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल,दक्षिण एशिया, थाइलैण्ड, इण्डोनेशिया, जापान और कई अन्य राष्ट्रों में भी की जाती है।संसार में माँ सरस्वती या विद्या की देवी के अनेकों रूप और मंदिर हैं जैसे जापान में माँ सरस्वती बेंजाइटन के रूप में पूजी जाती है किन्तु भारत विशेष रूप से कुछ जागृत मंदिर है जहाँ आज भी माँ सरस्वती निवास करती हैं जैसे सतना जिले की मैहर तहसील के पास त्रिकूट पर्वत पर माता शारदा का मंदिर स्थित है।कहते हैं आल्हा और उदल माँ शारदा के अनन्य भक्त थे और आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल स्वयं आकर करते हैं। पनाचिक्कड़ केरल में स्थित माँ सरस्वती का मंदिर केरल का एकमात्र मंदिर है जो देवी सरस्वती को समर्पित है, राजस्थान का पुष्कर जहां ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर स्थित है,वहीं विद्या की देवी सरस्वती का भी प्रसिद्ध मंदिर है और यही माँ सरस्वती के नदी रूप के भी प्रमाण मिलते हैं,श्रृंगेरी मंदिर जिसे शरादाम्बा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि ज्ञान और कला की देवी को समर्पित ये मंदिर आचार्य श्री शंकर भागावात्पदा ने 7वीं शताब्दी में बनवाया था,
श्री ज्ञान सरस्वती मंदिर,आंध्र प्रदेश, वारंगल श्री विद्या सरस्वती मंदिर,आंध्र प्रदेश इत्यादि।माँ सरस्वती ऋषि-मुनियों की अधिष्ठात्री है,
वाल्मीकि ऋषि ने रामायण और वेद व्यास ऋषि ने महाभारत लिखने के पहले माँ सरस्वती जी की अर्चना की थी। माँ सरस्वती की कृपा से समय समय पर मूढ़ से विद्वान बनने की कहानियाँ प्रचलित हैं तो कभी मंथरा दासी की बुद्धि फेर राम को वनवास भेज दुष्ट रावण से संसार को मुक्ति देने की कथाएं भी जग विदित है।
कहते हैं कि माँ सरस्वती के अनन्य भक्तों में भक्त कालिदास, वरदराजाचार्य और वोपदेव का नाम विशेष रूप से लिया जाता है क्योंकि ये तीनों ही अपनी मंद बुद्धि के कारण बहुधा उपहास के पात्र बनते थे।जबकि माँ सरस्वती के प्रति इनके अनुराग के कारण ये तीनों आज भी अपनी असीम विद्वता के लिए जाने जाते हैं।
कालिदास माँ सरस्वती के ऐसे उपासक थे के उन्होंने अपनी मूर्खता को विद्या के बल पर भुला कर महान कवि गए।उन्होंने ने हिंदू पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकार संस्कृत में रचनाएं कीं।उनके मुख्य रचना
नाटक अभिज्ञान शाकुन्तलम्, विक्रमोर्वशीयम् और मालविकाग्निमित्रम्; महाकाव्य- रघुवंशम् और कुमारसंभवम्, खण्डकाव्य- मेघदूतम् और ऋतुसंहार इत्यादि थे। वरदराज जिन्हें वरदराजाचार्य भी कहा जाता है।माँ सरस्वती की कृपा से संस्कृत व्याकरण के महापण्डित बन गए ।उन्होंने तीन महान ग्रन्थ मध्यसिद्धान्तकौमुदी, लघुसिद्धान्तकौमुदी तथा सारकौमुदी की रचना की।
वोपदेव जी भी माँ सरस्वती की आराधना से विद्वान्, कवि, वैद्य और वैयाकरण ग्रंथाकार के रूप में प्रसिद्ध हुए।इन्होंने प्रसिद्ध ग्रंथ ‘मुग्धबोध’ की रचना की। राजा भोज व हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता हैं।
बिहार, बंगाल, उड़ीसा में सरस्वती पूजा बड़े धूम धाम से मनाई जाती है।इस दिन माँ सरस्वती की सुन्दर प्रतिमाएं स्थापित कर,धुप,दिप,गंध,पुष्प,ॠतुफल,अक्षत,चंदन,हवन,आरती से माँ सरस्वती की आराधना की जाती है और अश्रुपूरित नेत्रों से माँ को विदा किया जाता है।
पंजाब राज्य में सभी बसंत के समय पीले वस्त्र पहनते है,पीली सरसो, पीली चावल का भोजन करते है।
गुजरात में बसंत पंचमी प्यार और भावनात्मक भावनाओं से जुड़ा हुआ है पर्व है।इस दिन उपहार के रूप में आम पत्तियों के साथ फूलों के गुलदस्ते,माला तैयार करके एक दूसरे को भेंट देते है और भगवा,गुलाबी या पीले रंग में कपड़े पहनते हैं।
मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़,उत्तर प्रदेश,उत्तराखंड,महाराष्ट्र में सुबह सुबह पवित्र नदियों में स्नान करके माँ सरस्वती, शिव, पार्वती व अन्य देवी देवताओं की पूजा करते है और बसंत में उगने वाले फल फूल अर्पित करते है।
माँ सरस्वती की पूजा साधक के हर मनोरथ को सिद्ध करती हैं किन्तु आजकल के कुछ युवा थोड़े दिग्भ्रमित हो रहें हैं और ज्ञान, ध्यान,एकाग्रता के पुष्पों की बजाय तेज आवाज में डीजे बजाने पर ज्यादा जोर देते हैं।माँ
सरस्वती की पूजा से ज्यादा पंडालों की सजावट, मूर्ति के आकार और विसर्जन की धूम धाम पर ध्यान देते हैं।जिस प्रकार के गीतों को बजाया जाता है के मानों माँ सरस्वती व उनका हंस एक पल वहाँ रूकना ना चाहते हो।
कई बार जिस पंडाल में नारी शक्ति का प्रतिनिधित्व करती हुई माँ सरस्वती विराजती हैं उनमें भी महिलाएं जाने के पहले सोचती है।जबकि युवाओं के लिए जहाँ माँ सरस्वती का रूप मनोहारी व पूजनीय है वहीं इनकी मूरत अनेकों संदेश देती है, जो युवाओं के लिए अनुकरणीय है जैसे
1.माँ सरस्वती की मुस्कुराहट से सौम्यता व नेत्रों से सलज्जता ग्रहण करना चाहिए।
2.माँ सरस्वती के वस्त्र जैसे धवल है वैसे ही हमारा हृदय शाश्वत व शीतल होना चाहिए।
3.माँ सरस्वती के श्वेत आभूषणों की तरह हमें हमारे मन,क्रम,वचन,संस्कार और पवित्र वाणी से स्वयं को अलंकृत करना चाहिए।
4.माँ सरस्वती के वीणा के सुर के तरह जीवन के सुर ताल संयमित व तारों के तरह वाणी और इंद्रियों पर नियंत्रण होना चाहिए।
5.माँ सरस्वती श्वेत पद्म के आसन पर विराजती है।कमल कीचड़ में रहकर भी वह भ्रष्ट नहीं होता।उसी तरह हमें विशुद्ध चरित्र का होना चाहिए।
6.माँ सरस्वती के कर कमलों की माला से हमें एक सूत्र में बंध कर निरंतर गतिमान रहना चाहिए।
7.माँ सरस्वती ज्ञान की प्रतीक है। उनके हाथ में की पुस्तक हमें शिक्षा देता है के हमें सदा ज्ञान विज्ञान से विभूषित रहना चाहिए।
8.माँ सरस्वती के वाहन मयूर से जिस तरह सर्प दूर भागते हैं और हंस मानसरोवर के मोती चुन कर ग्रहण करता है वैसे ही स्वयं से दुर्गुण,व्यसन,घृणा,द्वेष के सर्पों को दूर कर सिर्फ सकारात्मकता, सज्जनता व सदभावना को ग्रहण करना चाहिए।
9.माँ सरस्वती को लगने वाले भोग हमें सात्विकता की ओर आकर्षित करते हैं तो पतझर के तुरंत बाद आये नव कोपल,पुष्प और फल हमारे जीवन में संघर्ष के बाद मिलने वाले सफलता का उदाहरण देते हैं ।
10.माँ सरस्वती सात सुरों की जननी है जो जीवन के कठिनाइयों, निराशाओं,सफलताओं के बीच सामंजस्य स्थापित करना और हर परिस्थितियों में एक सुर में बनें रहना सिखाते हैं।
11.माँ सरस्वती एकाग्रता, ध्यान और योग की देवी है।अतः उनकी पूजा हमें एकाग्र,शांत,और विनम्र बनाती है।
तो आइये इस साल डीजे से नहीं माँ सरस्वती की पूजा दिल से करें…
नारी शक्ति ना सिमट जायें मंदिर में, कैलेंडर में, चार दिवारी में,
हर नारी को दे सम्मान समुचित के वो भी अब स्वछन्द उड़ें…।