Dk
Desk
समस्तीपुर:- दीपावली और छठ महापर्व के संपन्न होने के साथ ही भाई बहनों के पवित्र प्रेम का लोक पर्व सामा चकेवा जिले के विभिन्न क्षेत्रो में शुरू हो गया। यूं तो ग्रामीण महिलाएं व युवतियां विभिन्न जगहों पर अपने-अपने तरीके से समा चकेवा से जुड़े कहानियों के बारे में बताती है, मगर इससे जुड़े सभी कहानी का भाव एक ही जैसा दिखता है। कथाओं के अनुसार सामा कृष्ण की पुत्री थी। जिनपर अवैध सम्बन्ध का गलत आरोप लगाया गया था। जिसके कारण सामा के पिता कृष्ण ने गुस्से में आकर उन्हें मनुष्य से पक्षी बन जाने का श्राफ दे दिया था। अपने भाई चकेवा के प्रेम और त्याग के कारण वह पुनः पक्षी से मनुष्य के रूप में लौट पाई थी। उस वक्त से भाई-बहन के इस पवित्र प्रेम की पावन कहानी सामा चकेवा के रूप में संपूर्ण मिथिलांचल में प्रसिद्ध है। शाम होने पर महिलायें अपनी सखी सहेलियों की टोली में मैथिली लोकगीत गाती हुईं अपने-अपने घरों से बाहर निकलती हैं। उनके हाथों में बांस की बनी हुई टोकरियां रहती हैं। टोकरियों में मिट्टी से बनी हुई सामा-चकेवा की मूर्तियाँ, पक्षियों की मूर्तियाँ व चुगला की मूर्तियाँ रखी जाती है। मैथिली भाषा में जो चुगलखोरी करता है उसे चुगला कहा जाता है।सामा खेलते समय महिलायें मैथिली लोक गीत गा कर आपस में हंसी-मजाक भी करती हैं। भाभी ननद से और ननद भाभी से लोकगीत की ही भाषा में मजाक करती हैं। चुगला करे चुगली बिलइया करे म्यांउ म्यांयु चुगला के जीभ हम नोची, नोची खाउ’, ‘सामा खेले गेलली चकवा भईया के अंगना, कनिया भोजी देलिन लुलआईन’…. सामा चकेवा की ये गीत इस खेल त्योहार की प्रसिद्ध गीत है। मिथिला में लोगों का मानना है कि चुगला ने ही कृष्ण से सामा के बारे में चुगलखोरी की थी। षड्यंत्र करने वाले चुल्हक का मुहं जलाते हुए दुष्ट लोगों को सीख देती है कि ऐसा करने से युग-युग तक उनको अपमानित होना पड़ता है। ऐसा आठ दिनों तक चलता रहता है। यह सामा-चकेवा का उत्सव मिथिलांचल में भाई -बहन का जो सम्बन्ध है उसे दर्शाता है।वहीं कार्तिक पूर्णिमा को बहने अपने भाइयों को धान की नयी फसल की चुरा एवं दही खिला कर सामा-चकेवा के मूर्तियों को डोली पर बैठा कर विदाई गीत के बीच पोखरे व तालाबों में विसर्जित कर देते हैं।