वन्दना झा।
समस्तीपुर:- बिहार के शिशु मृत्यु दर में कमी आयी है। फैसिलिटी एवं सामुदायिक स्तर पर नवजात शिशुओं को प्रदान की जाने वाली बेहतर देखभाल से ही यह संभव हो सका है। लेकिन अभी भी कई स्तर पर सुधार की जरूरत है। इस दिशा में 15 नवम्बर से 21 नवम्बर तक आयोजित की जा रही राष्ट्रीय नवजात सप्ताह काफी उपयोगी साबित हो सकती है। उक्त बातें राज्य स्वास्थ्य समिति के कार्यपालक निदेशक मनोज कुमार ने बुधवार को राष्ट्रीय नवजात सप्ताह के ई-लांच एवं वर्चुअल उनमुखीकरण के दौरान कही।
*बेहतर प्रयास से शिशु मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत के हुयी बराबर-*
वहीं कार्यपालक निदेशक मनोज कुमार ने बताया कि बिहार की शिशु मृत्यु दर 3 अंक घटकर राष्ट्रीय औसत के बराबर हो गयी है। वर्ष 2017 में बिहार की शिशु मृत्यु दर 35 थी, जो वर्ष 2018 में घटकर 32 हो गयी। राज्य स्तर पर स्वास्थ्य कार्यक्रमों की बेहतर क्रियान्वयन से ही यह संभव हो सका है। उन्होंने बताया कि शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए प्रसव पूर्व प्रैक्टिसेज, बर्थ एक्स्फिक्सिया, सेप्सिस एवं सुरक्षित प्रसव पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि नवजातों को बेहतर ईलाज प्रदान करने एवं रोग प्रबंधन में एसएनसीयू (स्पेशल न्यू बोर्न केयर यूनिट), एनबीसीसी (न्यू बोर्न केयर कार्नर) एवं एनबीएसयू (न्यू बोर्न केयर स्टेबलाइजेशन यूनिट) की भूमिका बहुत अहम है। इसलिए यह जरुरी है कि फैसिलिटी बेस्ड इन सेवाओं की गुणवत्ता को सुनिश्चित किया जाए।
*होलोस्टिक एप्रोच की जरूरत:-*
राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी बाल स्वास्थ्य डॉ० वीपी राय ने बताया कि बिहार की नवजात मृत्यु दर पिछले 7 वर्षों से 27-28 के बीच लगभग स्थिर थी। लेकिन वर्ष 2018 में 3 पॉइंट की कमी आई है। बिहार की नवजात मृत्यु दर जो वर्ष 2017 में 28 थी, वर्ष 2018 में घटकर 25 हो गयी। राष्ट्रीय नवजात सप्ताह के आयोजन का मुख्य उद्देश्य नवजात देखभाल में होलिस्टिक एप्रोच (सभी आयामों) को शामिल करना है, जिसमें शिशु जन्म के समय बेहतर देखभाल, शुरूआती स्तनपान एवं 6 माह तक सिर्फ स्तनपान, नाभी की देखभाल (गर्भ नाल को सूखा रखना), नवजातों में खतरे के संकेत की पूर्व पहचान, कंगारू मदर केयर एवं गृह आधारित शिशु देखभाल शामिल है। उन्होंने बताया कि 5 वर्ष से कम आयु के शिशुओं में होने वाली मौतों में 70% हिस्सा नवजात मृत्यु दर का होता है। इसलिए नवजात देखभाल की जरूरत अधिक है।
*शुरूआती स्तनपान से नवजात मृत्यु दर में 22% की कमी:-*
यूनिसेफ के हेल्थ स्पेशलिस्ट डॉ० सैय्यद हुबेअली ने बताया कि विश्व भर में भारत में सबसे अधिक नवजातों (54900) की मौत होती है जो कुल मौतों का 22% है। सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल के तहत वर्ष 2030 तक नवजात मृत्यु दर को प्रति 1000 जीवित जन्म 12 करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसके लिए शुरूआती नवजात मौतों में कमी लाना बेहद जरुरी है, क्योंकि लगभग 80% नवजातों की मौत शिशु जन्म के 7 दिनों के भीतर ही होती है। वहीं 40% नवजातों की मौत प्रसव के दौरान या जन्म के 24 घंटों के भीतर हो जाती है। उन्होंने बताया कि जन्म के 1 घन्टे के भीतर नवजात का स्तनपान शुरू करने से नवजात मृत्यु दर में 22% की कमी एवं पांच साल से कम आयु वर्ग के बच्चों की मृत्यु दर में 13% की कमी लायी जा सकती है।
*विभिन्न गतिविधियों का होगा आयोजन:-*
विमलेश कुमार सिन्हा, सहायक निदेशक, बाल स्वास्थ्य एवं पोषण, राज्य स्वास्थ्य समिति ने बताया कि इस बार के राष्ट्रीय नवजात सप्ताह की थीम- ‘‘एन्स्युरिंग क्वालिटी, इक्विटी एंड डिग्निटी फॉर न्यूबोर्न केयर ऐट एवेरी हेल्थ फैसिलिटी एंड एवेरीवेयर’’ रखी गयी है। इस दौरान मेडिकल कॉलेज एवं जिला स्तर पर विभिन्न गतिविधियों का आयोजन भी किया जाना है। इस दौरान मेडिकल कॉलेज में आने वाले नवजातों की सघन जांच एवं दिसम्बर माह के पहले सप्ताह में टेक्निकल वेबिनार का आयोजन जैसी अन्य गतिविधियाँ की जाएंगी। वहीं जिला स्तर पर एसएनसीयू द्वारा नवजातों की फोन पर फॉलो-अप, डीईआईसी (डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर) पर नवजातों की स्क्रीनिंग एवं कोविड काल में लेबर रूम एवं डिलीवरी पॉइंट का रिव्यु आदि गतिविधियाँ की जाएगी।
*प्रीटर्म प्रबंधन बेहद जरुरी:-*
इस दौरान केयर इंडिया के बाल स्वास्थ्य टीम लीड डॉ० पंकज मिश्रा ने प्रीटर्म की पहचान, इसकी जटिलताएं एवं प्रबंधन को लेकर विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि गर्भावस्था के 37 सप्ताह से पूर्व होने वाले जन्म प्रीटर्म की श्रेणी में आते हैं। यदि बिहार की नवजात मृत्यु दर को सिंगल डिजिट में ले जाना है तो प्रीटर्म जन्मे नवजातों का प्रबंधन काफी जरुरी है, जिसमें ऐसे बच्चों की ट्यूब फीडिंग, ब्रेस्टफीडिंग एवं ऑक्सीजन थेरपी के सही इस्तेमाल पर जोर देना होगा। इस वेबिनार में राज्य के सभी जिले के शिशु स्वास्थ्य नोडल के साथ अन्य अधिकारी शामिल हुए।