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गुंजन कुमार,
समस्तीपुर बिहार।
समस्तीपुर बिहार:- पूरे दिन जिला स्थापना दिवस की शुभकामनाओं से सोशल मीडिया पर खबरें आती रही लेकिन चलिए बात करते हैं समस्तीपुर जिला स्थापना दिवस से:- 14 नवंबर 1972 को दरभंगा से अलग होकर अस्तित्व में आया जिला समस्तीपुर। विकास की गाथा इतनी बड़ी है कि आजतक कोई इंजीनियरिंग कॉलेज नही खुल सकी, मेडिकल कॉलेज का कल परसो शिलान्यास हुआ है। इससे अलग मैं बात करूंगा। समस्तीपुर की पहचान चीनी मिल और जुट मिल से थी जो अपनी उजड़ी दुनिया को वर्षों-वर्षों से सबको अपनी दर्द उस गरीब की थाली से छीना रहा है जिस थाली में कभी चीनी मिल और जुट मिल में काम कर रहे थाली में भोजन पड़ोसा जाता था। आज कहने को तो समस्तीपुर की धरती ने पूरे देश को एक नई क्रांति और नेता स्व कर्पूरी ठाकुर जी के रूप में दिया जो बिहार जैसे प्रदेश के मुख्यमंत्री भी बने पर चीनी मिल का उद्धार नही हो सका। वहीँ समस्तीपुर ने तो स्व. बलिराम भगत जी जैसे बड़े नेता शिक्षाविद को दिया जो लोकसभा अध्यक्ष के साथ हिमाचल प्रदेश एवं राजस्थान के राज्यपाल भी बने पर समस्तीपुर के विकास में एक कॉलेज छोड़कर कुछ नही मिला। वर्तमान में जिले से 10 विधायक 2 लोकसभा सदस्य एवं एक राज्यसभा सदस्य और एक विधानपरिषद हैं। फिर भी आजतक समस्तीपुर नगर निगम नही बन सका। कूड़े के अंबार पर सजता है समस्तीपुर की बाजार।
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सड़के जो मुसरीघरारी से समस्तीपुर होते हुए दरभंगा को जोड़ती है वो नेशनल हाईवे नही जबकि इस सड़क पर वाहनों का काफी दबाब एवं न जाने कितनी दुर्घटनाओं में कितनी माँ की खोक, कितने की सिंदूर छीन ली फिर भी सरकार के मंत्री सहित बड़े- बड़े नेता की आवाज तक नही उठी। वहीँ रेल में समस्तीपुर को गौरव सिर्फ इस बात का है कि यह मण्डल है लेकिन दुर्भाग्य यह है की यहाँ से एक भी ट्रेन किसी दूसरे राज्य के लिए नही खुलती है। स्वास्थ्य व्यवस्था ऐसा है की पूरे भारत मे समस्तीपुर ने बंध्या करन के नाम पर बड़ी लूट हुई थी। जिसकी जांच में शहर के बड़े-बड़े अस्पताल सामने आयी थी। जिले में एक मात्र सरकारी हॉस्पिटल है सदर अस्पताल की तो बात करना ही बेकार। जी हाँ जिला स्थापना दिवस तो मना पटेल मैदान में, खूब तालियां भी बजी सांस्कृतिक कार्यक्रम में आये कलाकारों के आवाज और फनकार पर भी वाहवाही भी खूब हुई कार्यक्रम का। पर क्या आत्मा यह नही बोलता की आज भी प्रखंड कार्यलयों से लेकर जिला कार्यालयों तक बिना रुपये दिए कार्य नही होता है और अंत में – गोलियों की तरतराहटों की आवाज में,
कुछ दिन तो गुज़रिये समस्तीपुर के बाजार में…?
सच्चाई – हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, समस्तीपुर का एक यह पहलू भी है…कड़वा सच।